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बगीचे में आम के टिकोले चुनते हुए सीखे लोकगीत  : शारदा सिन्हा

बगीचे में आम के टिको ले चुनते हुए सीखे लोकगीत  : शारदा सिन्हा

पटना।(अनूप नारायण सिंह)/शारदा सिन्हा का जन्म तब के सहरसा और अब के सुपौल जिले के हुलास गांव के एक समृद्ध परिवार में हुआ था | पिता शुकदेव ठाकुर शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी थे | बचपन में शारदा सिन्हा पटना में रहकर शिक्षा ली थी, शारदा सिन्हा बांकीपुर गर्ल्स हाईस्कूल की छात्रा रह चुकी है, बाद में मगध महिला कॉलेज से स्नातक किया। इसके बाद प्रयाग संगीत समिति,इलाहाबाद से संगीत में एमए किया |

 

और समस्तीपुर के शिक्षण महाविद्यालय से बीएड किया | स्कूल और कॉलेज के दिनों में गर्मी की छुट्टी होने पर अपने गांव हुलास जाती थी। वहां आम के अपने बगीचे या गाछी में दूसरी लड़कियों के साथ शौक से आम को अगोरने(रक्षा करने)जाती थी | इस दौरान रिश्तेदार लड़कियों के साथ लोक गीत गाना सीखा | हम बगीचे में दिन भर रहते और खूब लोक गीत गाती थी | पढ़ाई के दौरान संगीत साधना से भी जुड़ी रही | बचपन से ही नृत्य,गायन और मिमिक्री करती रहती थी,जिसने स्कूल-कॉलेज के दिनों में ही पहचान दिलाई |

शारदा सिन्हा एक बार जब शिक्षा ले रही थी तब एक दिन भारतीय नृत्य कला मंदिर में ऐसे ही सहेलियों के साथ गीत गा रही थी उनके गीत को सुनकर हरि उप्पल सर छात्राओं से पूछा कि यहां रेडिओ कहां बज रहा है | सब ने कहा कि शारदा गा रही है,इसे सुन उन्होंने मुझे अपने कार्यालय में बुलाया और टेप रिकार्डर ऑन कर कहा की अब गाओ | शारदा सिन्हा गाना शुरू किया जिसे बाद में उन्होंने सुनाया , सुन कर मुझे भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इतना अच्छा गा सकती हूं | मैंने पहली बार अपना ही गाया गाना रिकार्डेड रूप में सुना था|

 

शारदा सिन्हा बचपन में पटना में रहकर शिक्षा ले रही थी, स्कूल और कॉलेज के दिनों में गर्मी की छुट्टी होने पर अपने गांव हुलास जाती थी | वहां आम के अपने बगीचे या गाछी में दूसरी लड़कियों के साथ शौक से आम को अगोरने(रक्षा करने) जाती थी | वह हम आम के टिकोले चुनती और खाती | इस दौरान रिश्तेदार लड़कियों के साथ लोक गीत गाना सीखा |

शारदा सिन्हा के गायन की इस यात्रा में पिता के साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों का भरपूर सहयोग मिला | शादी के बाद पति डॉ. ब्रज किशोर सिन्हा ने भी हर कदम पर शारदा सिन्हा साथ दिया | इसके अलावा परिवार में बेटी वंदना, दामाद संजू कुमार, बेटा अंशुमन का भी सहयोग मिलता रहता है | शारदा सिन्हा की बेटी वंदना खुद एक अच्छी गायिका हैं और उनकी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं |शारदा सिन्हा को इनके गायन के लिए राज्य और देश के कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है | 1991 में शारदा सिन्हा को भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है | इसके साथ ही शारदा सिन्हा को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार समेत दर्जनों पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है | शारदा सिन्हा ने अपने गायन से देश की सीमाओं से पार जाकर मॉरीशस में भी खूब लोकप्रियता पाई है |

 

1988 में उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के साथ मॉरीशस के 20वें स्वतंत्रता दिवस पर जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में यह भी शामिल थीं | वहां इनका भव्य स्वागत किया गया, इनके गायन को पूरे मॉरीशस में सराहा गया | इस यात्रा को याद करते हुए वह बताती हैं कि हम कलाकार होटल जाने के लिए बैठे तब मेरा गाया गीत गाड़ी में बजने लगा, इसे सुन काफी चौंकी, पता किया तो पता चला कि सभी कलाकारों की गाड़ी में मेरा गाया गीत बज रहा है। इसे मॉरीशस ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन की ओर से चलाया जा रहा था। इसे सुन काफी खुशी मिली |

 

बहुत कम लोगों को पता होगा कि वह कभी मणिपुरी नृत्य की एक अच्छी नृत्यांगना भी रह चुकी हैं | शारदा सिन्हा को बचपन से ही नृत्य और गायन से कितना लगाव था | भारतीय नृत्य कला मंदिर में नृत्य की परीक्षा के समय इनका दाहिना हाथ फ्रैक्चर हो गया लेकिन इसके बावजूद इन्होंने मणिपुरी नृत्य किया और अपनी कक्षा में प्रथम आईं | भारतीय नृत्य कला मंदिर के ऑडिटोरियम का उद‌्घाटन करने के लिए तब के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधा कृष्णन आए, उस कार्यक्रम में इन्होंने मणिपुरी नृत्य पेश किया जिसे उन्होंने काफी सराहा | याद कर वह कहती हैं कि उनके गांव हुलास में दुर्गापूजा में नाटक होता था उसे देखने के लिए भी लड़कियां नहीं जाती थीं | पिता की दूरदर्शी सोच ने उन्हें घर से बाहर निकाला, घर पर गुरु को बुलाकर संगीत की शिक्षा दिलाई और बाद में भारतीय नृत्य कला मंदिर में नाम लिखवा दिया | उसी गांव में 1964 में पहली बार मंच पर भी गाकर रूढ़िवादी सोच को तोड़ा | बाद में गांव वाले परिवार वालों से पूछते कि शारदा अब कब गांव आएगी और गाएगी | वह कहती हैं कि पिता काफी प्रगतिशील थे इसलिए उन्होंने सपोर्ट किया लेकिन समाज तो रूढ़िवादी ही था इसलिए मायके के लोगों को बुरा लगता कि मैं नृत्य और गायन सीखती हूं |

शारदा सिन्हा के जीवन का हमेशा से यह उसूल रहा है कि वह अच्छे गाने गाएं, जो भी गाया उसमें हमेशा गुणवत्ता का ख्याल रखा है | उनका मानना है कि अच्छा गाने वाले बहुत कम गाकर भी लोगों तक पहुंच सकते हैं और लोकप्रियता पा सकते हैं | अगर किसी गाने के बोल अश्लील या अच्छे नहीं हैं तो उसे वह नहीं गातीं | गायन में शालीनता और मिट्टी की सोंधी महक रहे यह कोशिश वह हमेशा करती हैं |यही कारण है कि बॉलीवुड से आए गायन के कई प्रस्ताव को भी नकार चुकी हैं |

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Ankit Piyush

Ankit Piyush is the Editor in Chief at BhojpuriMedia. Ankit Piyush loves to Read Book and He also loves to do Social Works. You can Follow him on facebook @ankit.piyush18 or follow him on instagram @ankitpiyush.

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