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फ़िल्म नीति और अनुदान न मिलने से झारखंड के निर्माताओं में नाराजगी।

फ़िल्म नीति और अनुदान न मिलने से झारखंड के निर्माताओं में नाराजगी।

राँची/मुम्बई।फ़िल्म नीति और दिया जानें वाला अनुदान को लेकर लोहरदगा के फ़िल्म निर्माता निर्देशक लाल विजय शाहदेव काफी नाखुश हैं।अकेले झारखंड के लाल विजय शाहदेव ही नहीं,बल्कि कई फ़िल्म निर्माता निर्देशक फ़िल्म नीति और अनुदान न मिलने से खफा हैं।इस बात से झारखंड के कलाकार और फ़िल्म निर्माता शुरू से ही दुःखी हैं कि जिसके लिए फ़िल्म नीति बनी।जिनके लिए अनुदान की व्यवस्था की गई।आज वे ही सभी वंचित हैं।आपको बता दे कि झारखंड सरकार द्वारा जब से झारखंड फ़िल्म विकास निगम का गठन किया गया हैं।लाल विजय शाहदेव ने इस पर कई सवाल उठाए गए हैं।जिस उम्मीद से फ़िल्म नीति का निर्माण हुआ था।ऐसा मालूम पड़ता हैं कि उस पर पानी फिरता दिख रहा है।पहले इस समिति का अध्यक्ष अनुपम खेर को बना दिया गया था। जो कभी बोर्ड की मीटिंग में शामिल नही हुए।

 

लेकिन,उन्होंने अपनी फिल्म रांची डायरी बनाकर सब्सिडी लेने में तुरंत सफल हो गए। ऐसे ही मुकेश भट्ट भी बेगम जान की चंद दिनों की शूटिंग में ही सब्सिडी बटोर कर चले गए। इस क्रम में कई स्तरहीन फिल्मों को भी अच्छी खासी सब्सिडी से नवाजा गया। इन फिल्मों में झारखंड के खूबसूरत लोकेशन को कितना दिखाया गया हैं।यह भी सवाल का विषय बना हुआ हैं।अब जब नागपुरी भाषा में अच्छी फिल्मों का निर्माण शुरू हुआ। तो फ़िल्म नीति की नीयत में खोट आ गयी। पुराने समिति को निष्क्रिय बताकर नई समिति बनाई गई।आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरी समिति में अधिकांश सदस्यों को फ़िल्म निर्माण से कोई लेना देना नही है।कई अवार्ड से सम्मानित समिति के अध्यक्ष मेघनाथ ने किस वजह से इस समिति को नही अपनाया।यह भी जानने का विषय है।

 

 

गुपचुप तरीके से कुछ लोगों के साथ संपर्क किया गया और उन्हें बड़े ही गोपनीय तरीके से समिति में शामिल कर लिया गया। झारखंड के सारे प्रतिभावान और फ़िल्म निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा रहे लोगों को पूछा तक नही गया। दो दशक से भी ज़्यादा समय से सक्रिय निर्माता निर्देशक लाल विजय शाहदेव और नंदलाल नायक ने फ़िल्म नीति की कार्य प्रणाली और समिति के अधिकांश सदस्यों की योग्यता पर सवाल उठाते हुए इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है। एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए दोनों ने इस पर अपनी नाराजगी जताते हुए आने वाले सरकार से मांग की है कि इसे अविलंब भंग करके योग्य और अनुभवी लोगो को शामिल किया जाय। फ़िल्म नीति की पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाते हुए इसे सरल बनाया जाय जिससे सही फ़िल्म निर्माताओं को बेवजह परेशान न होना पड़े।

 

ज्ञात हो कि लाल विजय शाहदेव की नागपुरी फ़िल्म “फुलमनिया” का प्रदर्शन कांन्स फ़िल्म फेस्टिवल में होने के बाद बृहद रूप से झारखंड के अलावा ओड़िसा, छत्तीसगढ़, असम, बंगाल बिहार में भी रिलीज किया गया।फ़िल्म की तारीफ दर्शकों के अलावा मीडिया ने भी बढ़ चढ़कर किया। यहां तक कि एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में झारखंड फ़िल्म डेवलपमेंट कॉउन्सिल के निदेशक ने इस फ़िल्म की तारीफ करते हुए जहां सिनेमा हॉल नही है वहां भी इसे टॉयलेट एक प्रेम कथा की तरह हर जगह प्रदर्शित करने की भी घोषणा की। प्रदर्शन का तो पता नही पर सारी औपचारिकता पूरी करने के बाद भी ये नागपुरी फ़िल्म आजतक सब्सिडी की राह देख रही है।

 

उसी तरह नंदलाल नायक की नागपुरी फ़िल्म “धुमकुड़िया” जो कई सारे फ़िल्म फेस्टिवल में अवार्ड लेकर सुर्खियां बंटोर रही है उसे भी समिति द्वारा निराशाजनक मूल्यांकन का सामना करना पड़ रहा है। फुलमनिया जहाँ डायन प्रथा, बांझपन और बेटा बेटी की समानता पर आधारित है वहीं धुमकुड़िया झारखंड की ज्वलंत समस्या महिला तस्करी पर आधारित है। सरकार इन ज्वलंत मुद्दों पर न जाने कितने अरबो रुपए खर्च करती आ रही है और आज जब इस तरह के मुद्दों पर फ़िल्म बनाकर ये निर्माता निर्देशक लोगों को जागरूक करने के प्रयास में लगे हुए हैं तो उन्हें झारखंड फ़िल्म नीति से कोई सपोर्ट नही मिल रहा है। उन्हें बार बार अयोग्य समिति के मूल्यांकन और फ़िल्म नीति की जटिल प्रक्रिया से परेशान होना पड़ रहा है ।

 

उन्हें ऊपर से नीचे तक भटकना पड़ रहा है। पिछले साल गोवा फ़िल्म फेस्टिवल में कई करोड़ रुपये खर्च करके जे एफ डी सी एल को क्या मिला ये सोचने और समझने की बात है जबकि उतने पैसे से कई फिल्मों को सब्सिडी दी जा सकती थी। नागपुरी कला संस्कृति के बढ़ावा के नाम पर बेवजह खर्च करना और ईमानदारी के साथ पूर्ण रूप से झारखंड में बनी नागपुरी फिल्मों को सब्सिडी देने में कोताही बतरना समझ से परे है। ऐसी फिल्मों के निर्माण से झारखंड फ़िल्म इंडस्ट्री में एक नयी उम्मीद जगी है। इसे सरकार और झारखंड फ़िल्म डेवलपमेंट कॉउन्सिल को विशेष रूप से प्रोत्साहन देना चाहिए था। नंदलाल नायक और लाल विजय ने दुखी मन से बताया कि पहले तो मुख्यमंत्री हमें झारखंड के ज्वलंत मुद्दे पर फ़िल्म बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं और जब उस पर हम तन मन धन से काम करते हैं।तो हमें घर की मुर्गी दाल बराबर समझकर ऑफिस दर ऑफिस भटकना पड़ता है। सिंगल विंडो की बात करने वाली फिल्म नीति से गुजरने के लिए न जाने कितने तथाकथित विंडो में ताक झांक करना पड़ता है। किसी अफसर या संबंधित अधिकारियों के पास कोई साफ जवाब नही है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ये सोचने और समझने की बात है।

 

लाल विजय शाहदेव ने यह भी बताया कि नयी समिति के निर्माण के वक़्त उन्हें एक उच्च अधिकारी द्वारा प्रोजेक्ट भवन में बुलाकर समिति में रहने के लिए बोला गया।फिर सूचना भवन में एक अधिकारी ने इस बात पर मुहर लगाते हुए। उन्हें समिति के लिए समय देने की बात कही और उनसे समिति बनाने के लिए सहायता मांगी। बाद में उन्हें बताये बगैर समिति का गठन कर दिया गया। सूत्रों से पता चला कि इस खेल में एक तत्कालीन मंत्री और उनके कुछ करीबी लोगों का हाथ था जो अफसरों से मिलकर कुछ न कुछ खुराफ़ाती करते रहते हैं। नंदलाल नायक ने बताया कि हम दोनों ने झारखंड का नाम सिर्फ अपने देश मे नही बल्कि विदेशों में भी कर दिखाया है।

 

सरकार और संबंधित अफसर को इस पर संज्ञान लेने की ज़रूरत है। लाल विजय ने अपने टी. वी. सीरियल और फ़िल्म की शूटिंग झारखंड में करके यहां के कई प्रतिभाओं को एक प्लेटफार्म दिया वहीं नंदलाल नायक ने अपनी लोक संगीत और नृत्य के साथ फिल्मो में संगीत देते हुए बरसों तक विदेशों में झारखंड का नाम रोशन किया। आज फ़िल्म नीति से दोनों दुखी हैं और इसमें हो रहे तरह तरह के गोपनीय प्रयोग से बहुत चिंतित हैं।

दोनों ने एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए बताया कि अगर नई सरकार के गठन के बाद इस पर तुरंत बदलाव नही आता है तो अदालत का सहारा लिया जाएगा। हमारे पास लंबी फेरहिस्त है जिसका जवाब जल्द जे एफ डी सी एल से मांगा जाएगा और उनके जवाब के बाद इसे सार्वजनिक किया जाएगा।

 

नंदलाल नायक ने बताया कि समिति के अधिकांश सदस्य अपने अपने फील्ड में संघर्षरत हैं और वो सभी स्थानिय निर्माताओं को हीन भावना से परखते हैं। जो ख़ुद संघर्ष के दौर में हैं और काम की तालाश में हैं वो कैसे किसी फ़िल्म का सही मूल्यांकन करेंगे।
लाल विजय शाहदेव ने सारे अफसरों और अधिकारियों से झारखंड के सभी निर्माता निर्देशकों को वही सहूलियत देने की मांग की है जो बड़े और नामचीन निर्माताओं को मिलती है। अगर उनके व्यवहार में बदलाव नही आया तो इसे जन आंदोलन का स्वरूप देकर पूरे झारखंड में इसका विरोध प्रकट किया जाएगा।

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Ankit Piyush

Ankit Piyush is the Editor in Chief at BhojpuriMedia. Ankit Piyush loves to Read Book and He also loves to do Social Works. You can Follow him on facebook @ankit.piyush18 or follow him on instagram @ankitpiyush.

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