BHOJPURI MEDIA ANKIT PIYUSH (https://www.facebook.com/ankit.piyush18 शिक्षा के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में भी विशिष्ट पहचान बनायी ममता मेहरोत्रा ने आसमां क्या चीज़ है वक्त को भी झुकना पड़ेगा अभी तक खुद बदल रहे थे आज तकदीर को बदलना पड़ेगा संभावनाओं की कोई कमी नहीं है और अगर आपके पास जूनून है तो कोई मंजिल दूर […]
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ANKIT PIYUSH (https://www.facebook.com/ankit.piyush18
शिक्षा के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में भी विशिष्ट पहचान बनायी ममता मेहरोत्रा ने
आसमां क्या चीज़ है
वक्त को भी झुकना पड़ेगा
अभी तक खुद बदल रहे थे
आज तकदीर को बदलना पड़ेगा
वक्त को भी झुकना पड़ेगा
अभी तक खुद बदल रहे थे
आज तकदीर को बदलना पड़ेगा
संभावनाओं की कोई कमी नहीं है और अगर आपके पास जूनून है तो कोई मंजिल दूर नहीं है।
जानी मानी लेखिका और समाज सेविका ममता मेहरोत्रा आज के दौर में न सिर्फ साहित्य जगत में धूमकेतु की तरह छा गयी हैं बल्कि शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र के क्षितिज पर भी सूरज की तरह चमक रही है। उनकी ज़िन्दगी संघर्ष, चुनौतियों और कामयाबी का एक ऐसा सफ़रनामा है, जो अदम्य साहस का इतिहासबयां करता है।बहमुखी प्रतिभा की धनी ममता मेहरोत्रा ने अब तक के अपने कार्यकाल के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया और हर मोर्चे पर कामयाबी का परचम लहराया।ममता मेहरोत्रा लेखन के क्षेत्र में लघु कथा, निबंध, लंबी
कविताएं एवं नाटकों के कथ्य की रचना कर चुकी है।ममतो मेहरोत्रा की रूचि लघु फिल्मों एवं डाक्यूमेंट्री के निर्माण में भी है।ममता मेहरोत्रा
सामाजिक सरोकार और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।
कविताएं एवं नाटकों के कथ्य की रचना कर चुकी है।ममतो मेहरोत्रा की रूचि लघु फिल्मों एवं डाक्यूमेंट्री के निर्माण में भी है।ममता मेहरोत्रा
सामाजिक सरोकार और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।
नवाबों के शहर उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मी ममता मेहरोत्रा प्रारिंभिक शिक्षा लखनऊ के सुप्रसिद्ध लरुटो कॉन्वेंट से की। ममता
मेहरोत्रा को पढ़ाई लिखाई में काफी रूचि रही थी। ममता मेहरोत्रा के पिता प्रेम नाथ खन्ना और मां मीना खन्ना घर की बड़ी बेटी को अपनी राह खुद चुनने की आजादी दी थी। ममता मेहरोत्रा उन गिनी चुनी चंद लोगों में शामिल है जिन्होंने उन दिनों आईसीएससी बोर्ड में हिंदी साहित्य में 90 प्रतिशत नंबर लाया था।
मेहरोत्रा को पढ़ाई लिखाई में काफी रूचि रही थी। ममता मेहरोत्रा के पिता प्रेम नाथ खन्ना और मां मीना खन्ना घर की बड़ी बेटी को अपनी राह खुद चुनने की आजादी दी थी। ममता मेहरोत्रा उन गिनी चुनी चंद लोगों में शामिल है जिन्होंने उन दिनों आईसीएससी बोर्ड में हिंदी साहित्य में 90 प्रतिशत नंबर लाया था।
उसके बाद उन्होंने आई. टी. कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन किया। ममता मेहरोत्रा उन दिनों अधिवक्ता , डांसर या लेक्चरार बनना चाहती थी। ममता मेहरोत्रा ने प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद में कुमकुम श्रीवास्तव से कत्थक का चार वर्षीय कोर्स पूरा किया।
वर्ष 1991 में ममता मेहरोत्रा की शादी आईएस आफिसर श्री बज्रेश मेहरोत्रा के साथ हुयी जिसके बाद वह बिहार आ गयी। ममता मेहरोत्रा अपने पति मे साथ तत्कालीन बिहार अब झारखंड के साहेबगंज जिले में चली गयी।शादी के बाद ममता मेहरोत्रा के जीवन में ठहराव सा आ गया।शादी के तुरंत बाद ममता मेहरोत्रा मां बनी और वह अपने बच्चों के परवरिश में लग गयी।
साहेबगंज के बाद ममता मेहरोत्रा गया, बेतिया, छपरा, मुजफ्फरपुर, लोहरदग्गा, चाईंबासा, जमशेदपुर, पटना कई जगहों पर पति के ट्रांसफर की वजह से घूमती रही.।इस दौरान ममता मेहरोत्रा की पढाई-लिखाई भी रूक सी गयी। इस बीच ममता मेहरोत्रा वर्ष 1993 से सामाजिक क्षेत्र में काम करने लगी। ममता मेहरोत्रा ने बताया कि जब उनके पति का तबादला मुजफ्फरपुर हुआ तब हमलोग गांव-गांव जाकर महिलाएं के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप बनातें थें। उस समय ये नई बात थी, नयी-नयी सोच थी. इसको हमलोग एक मुकाम देने की कोशिश करते थे कि जो गांव की महिलाएं हैं उन्हें किस तरह से आत्मनिर्भर बना सकें।ममता मेहरोत्रा के दो बच्चे जब कुछ बड़े हुये तब उनहोंने एक बार से पढ़ाई शुरू
की और इसी क्रम में 1997 में जूलॉजी में पीजी किया।
साहेबगंज के बाद ममता मेहरोत्रा गया, बेतिया, छपरा, मुजफ्फरपुर, लोहरदग्गा, चाईंबासा, जमशेदपुर, पटना कई जगहों पर पति के ट्रांसफर की वजह से घूमती रही.।इस दौरान ममता मेहरोत्रा की पढाई-लिखाई भी रूक सी गयी। इस बीच ममता मेहरोत्रा वर्ष 1993 से सामाजिक क्षेत्र में काम करने लगी। ममता मेहरोत्रा ने बताया कि जब उनके पति का तबादला मुजफ्फरपुर हुआ तब हमलोग गांव-गांव जाकर महिलाएं के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप बनातें थें। उस समय ये नई बात थी, नयी-नयी सोच थी. इसको हमलोग एक मुकाम देने की कोशिश करते थे कि जो गांव की महिलाएं हैं उन्हें किस तरह से आत्मनिर्भर बना सकें।ममता मेहरोत्रा के दो बच्चे जब कुछ बड़े हुये तब उनहोंने एक बार से पढ़ाई शुरू
की और इसी क्रम में 1997 में जूलॉजी में पीजी किया।
जुनूँ है ज़हन में तो हौसले तलाश करो
मिसाले-आबे-रवाँ रास्ते तलाश करो इज़्तराब रगों में बहुत ज़रूरी है
उठो सफ़र के नए सिलसिले तलाश करो
मिसाले-आबे-रवाँ रास्ते तलाश करो इज़्तराब रगों में बहुत ज़रूरी है
उठो सफ़र के नए सिलसिले तलाश करो
2002 ममता मेहरोत्रा ने घरेलू हिंसा केस के लिए गया में भारत की पहली वूमेन हेल्प लाइन सूर्या महिला कोषांग शुरू की।ममता मेहरोत्रा ने बताया कि उन्होंने इस हेल्पलाइन से जुड़कर कम से कम 1000 घरेलू हिंसा के मामलों को सहजता पूर्वक सुलझाया है। इसके लिये ममता मेहरोत्रा ने काफी शोध किया और रेड लाइट एरिया में भी जाने से नही हिचकी। ममता मेहरोत्रा ने एक किताब (We Wemen) है जिसमें उनके निजी अनुभव हैं।
वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से
वो और थे जो हार गए आसमान से
वो और थे जो हार गए आसमान से
वर्ष 2005 में ममता मेहरोत्रा अपने पति के साथ राजधानी पटना आ गयी जो उनके करियर के लिये अहम पड़ाव साबित हुआ। ममता मेहरोत्रा ने बताया कि लेखन में उनका रूझान बचपन से ही है। जब वो छोटी थीं, तब से ही रोज डायरी लिखा करती थीं। वो वेहद ही संवेदनशील स्वभाव की हैं। जब भी कुछ उनके दिल को छूता है या प्रभावित करता है तो वो उसे कागज पर उकेर लेती हैं। ममता मेहरोत्रा की लिखी पहली पुस्तक (कहानी संग्रह) 2005 में जारी की गयी। इसके बाद ममता मेहरोत्रा अबतक 24 किताबें लिख चुकी है। ममता मेहरोत्रा की लिखी कहानियाँ कादम्बनी और अन्य स्थानीय समाचार पत्रों में छपती रही है। सामाजिक परिवेष तथा वर्तमान संदर्भ जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी ममता
मेहरोत्रा ने किया है।वह मानवाधिकारों के लिए गणादेश में भी लिखती रही हैं।ममता मेहरोत्रा ने कक्षा 1 से 9 तक के विद्यार्थियों के लिए पाठ्य पुस्तकें भी लिखी हैं। उनकी लिंग-भेद पर हिन्दी व अंग्रेजी में कई पुस्तकें छप चुकी हैं।
मेहरोत्रा ने किया है।वह मानवाधिकारों के लिए गणादेश में भी लिखती रही हैं।ममता मेहरोत्रा ने कक्षा 1 से 9 तक के विद्यार्थियों के लिए पाठ्य पुस्तकें भी लिखी हैं। उनकी लिंग-भेद पर हिन्दी व अंग्रेजी में कई पुस्तकें छप चुकी हैं।
उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है
ममता मेहरोत्रा कादाम्बनी क्लब और बाद में सामायिक परिवेश समेत कई सामाजिक संसथाओं से जुड़कर काम किया। वर्ष 2017 में ममता मेहरोत्रा राजधानी पटना के प्रतिष्ठित स्कूल डीपीएस की प्रिसिंपल बनी। इससे पूर्व ममता मेहरोत्रा डीएभी के कई ब्रांच में बतौर प्रिसिंपल रह चुकी थी।
रख हौसला वो मन्ज़र भी आएगा,
प्यासे के पास चल के समंदर भी आयेगा;
थक कर ना बैठ ऐ मंज़िल के मुसाफिर,
मंज़िल भी मिलेगी और मिलने का मजा भी आयेगा।
प्यासे के पास चल के समंदर भी आयेगा;
थक कर ना बैठ ऐ मंज़िल के मुसाफिर,
मंज़िल भी मिलेगी और मिलने का मजा भी आयेगा।
कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद को प्रेरणा मानने वाली ममता मेहरोत्रा का नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस’ में भी दर्ज किया गया है। उनकी किताब ‘माटी का घर’ जिस पर आठ भाषाओं में समीक्षात्मक विश्लेषण की किताब प्रकाशित हुई है,उसके लिए उन्हें यह उपलब्धि मिली है| यह किताब का नाम ‘माटी का घर’ की शोधात्मक समीक्षा के नाम से है| इस शोध प्रबंधन का प्रकाशन दिल्ली की एक पब्लशिंग हाउस द्वारा किया गया है और इसपर शोध समीक्षा कुमार ने की है| हिंदी,संस्कृत,भोजपुरी,मैथिली,म गही,अंगिका,वज्जिका, और अंग्रेजी में शोध
समीक्षा प्रकाशित हुई है|
समीक्षा प्रकाशित हुई है|
ज़िन्दगी हसीं है ज़िन्दगी से प्यार करो
हो रात तो सुबह का इंतज़ार करो
वो पल भी आएगा जिस पल का इंतज़ार है आपको
बस खुदा पे भरोसा और वक़्त पे ऐतबार करो
हो रात तो सुबह का इंतज़ार करो
वो पल भी आएगा जिस पल का इंतज़ार है आपको
बस खुदा पे भरोसा और वक़्त पे ऐतबार करो
ममता मेहरोत्रा को दैनिक भास्कर समूह की ओर से उनके सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये देश के नौ प्रभावशाली लोगों में शामिल कर सम्मानित किया है।ममता मेहरोत्रा ने कहा मैंने जीवन की बिहार में शुरुआत की. फिर बिहार ही मेरी कर्मभूमि हो गयी. यहाँ रहते हुए मुझे 28-29 साल हो गए. मैं यह नहीं जानती कि मैं बिहारवासी हूँ कि मैं यू.पी. की हूँ. क्यूंकि मैं अपने काम की वजह से बिहार को रिप्रजेंट करती हूँ इसलिए खुद को बिहारी मानती हूँ।मुझे उम्र के इस पड़ाव पर भी पढ़ने का, डिग्री लेने का, निरंतर आगे बढ़ने का जुनून है. मैं आज भी अपने आप को एक विद्यार्थी ही मानती हूँ. तो कहीं-न कहीं वो सीखने की प्रक्रिया आज भी चल रही है जिसकी वजह से अंदर से मैं अपने आप को बहुत जवां महसूस करती हूँ।ममता मेहरोत्रा ‘यौन अपराधों से बालकों को संरक्षण अधिनियम-2012’ के तहत भी काम कर रही है।
ममता मेहरोत्रा ने कहा कि महिला होना ही अपने आप में चुनौती है । आज भी समाज में यह धारणा व्याप्त है कि किसी महिला की सफलता के पीछे उसे रूप और आकर्षण की अहमियत होती है। हम महिलाएं और बेटियां आज भी पुरूषों और बच्चों को इस बात के लिए प्रभावित या ट्रेंड करने में सफल नहीं हो पा रहीं हैं कि वो हमें उचित सम्मान दें, जिसकी हम हकदार हैं। मेरे कार्यक्षेत्र में मुझे अपने पति से बहुत सहयोग मिला. किसी भी कार्य में उनका हस्तक्षेप नहीं रहता है।
ममता मेहरोत्रा ने कहा कि महिला होना ही अपने आप में चुनौती है । आज भी समाज में यह धारणा व्याप्त है कि किसी महिला की सफलता के पीछे उसे रूप और आकर्षण की अहमियत होती है। हम महिलाएं और बेटियां आज भी पुरूषों और बच्चों को इस बात के लिए प्रभावित या ट्रेंड करने में सफल नहीं हो पा रहीं हैं कि वो हमें उचित सम्मान दें, जिसकी हम हकदार हैं। मेरे कार्यक्षेत्र में मुझे अपने पति से बहुत सहयोग मिला. किसी भी कार्य में उनका हस्तक्षेप नहीं रहता है।
ममता मेहरोत्रा को युवा रोल मॉडल मानते हैं। ममता मेहरोत्रा उन्हें हर कदम सपोर्ट करती हैं। ममता मेहरोत्रा युवाओं को मोटिभेट करते हुये कहती हैं
टूटने लगे हौसले तो ये याद रखना,
बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते,
ढूंढ़ लेते हैं अंधेरों में मंजिल अपनी,
क्योंकि जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते…
बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते,
ढूंढ़ लेते हैं अंधेरों में मंजिल अपनी,
क्योंकि जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते…
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