ANKIT PIYUSH (https://www.facebook.com/ankit.piyush18
बहुमुखी प्रतिभा से लोगों को दीवाना बना रहे हैं शांदिल इशान
बंदे है हम उसके हम पर किसका जोर | उम्मीदो के सूरज, निकले चारो और ||
इरादे है फौलादी, हिम्मती है कदम ||| अपने हाथो किस्मत लिखने आज चले है हम।
जाने माने कोरियोग्राफर-अभिनेता और निर्देशक शांदिल इशान की ज़िन्दगी संघर्ष, चुनौतियों और कामयाबी का एक ऐसा सफ़रनामा है, जो अदम्य साहस का इतिहास बयां करता है। शांदिल इशान ने अपने करियर के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया और हर मोर्चे पर कामयाबी का परचम लहराया।
बिहार की राजधानी पटना में वर्ष 1983 में वर्ष की शुरूआत एक जनवरी को जन्में शांदिल इशान के पिता पुलकेश्वर वर्मा और मां किशोरी देवी घर के सबसे छोटे चश्मों चिराग को डॉक्टर बनाना चाहते थे। वर्ष 2000 में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद शांदिल इशान का शौक फैशन डिजाइनिंग की ओर हो गया। मशहूर बॉलीवुड फैशन डिजानर मनीष मल्होत्रा से प्रेरित होने की वजह से शांदिल इशान उन्हीं की तरह फैशन डिजाइनर बनने का ख्वाब देखने लगे। वर्ष 2003 में शांदिल ने आईआईएफटी में दाखिला लिया और छह महीने का कोर्स किया। इसी दौरान कुछ दोस्तों ने उन्हें सलाह दी कि यदि आप फैशन डिजाइनिंग में अच्छा काम करना चाहते तो आपको निफ्ट से पढाई करनी चाहिये। शांदिल ने 2005 में निफ्ट की तैयारी शुरू की। जल्द ही शांदिल की मेहनत रंग लायी और वह 57 वां रैंक लाने में कामयाब हो गये। हालांकि आर्थिक कारणों से वह निफ्ट में दाखिला नही ले सके।
जिंदगी में कुछ पाना हो तो खुद पर ऐतबार रखना
सोच पक्की और क़दमों में रफ़्तार रखना
कामयाबी मिल जाएगी एक दिन निश्चित ही तुम्हें
बस खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार रखना।
शांदिल इशान अब बतौर कोरियोग्राफर अपनी पहचान बनाने का सपना देखने लगे। श्यामक डाबर से प्रभवित शांदिल ने डांस सीखना शुरू किया।वर्ष 2006 में शांदिल इशान ने एनएसआई डासिंग स्कूल की नींव रखी। शांदिल इशान के सिखाये कई बच्चें आज देश-विदेश में अपनी प्रतिभा का परचम लहरा चुके हैं। वर्ष 2008 में शांदिल इशान ने निश्चय किया कि वह फिल्म और कला के क्षेत्र में जुड़े लोगों को अपने इस्टीच्यूट के जरिये सम्मानित करेंगे। इसी को देखते हुये उन्होंने वर्ष 2008 में एनएसआई भोजपुरी फिल्म फेस्टिबल की शुरूआत की। इस फेस्टिबल के जरिये भोजपुरी सिनेमा के पुरोधा कहे जाने वाले मोहन जी प्रसाद , स्वर कोकिला शारदा सिन्हा , महानायक कुणाल सिंह , सुप्रसिद्ध गीतकार विनय बिहारी ,आशुतोष खरे , विनय आनंद , देवी और छोटु छलिया समेत कई सम्मानित किये जा चुके हैं।
ज़िंदगी कि असली उड़ान बाकी है
जिंदगी के कई इम्तेहान अभी बाकी है
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीन हमने
अभी तो सारा आसमान बाकी है
वर्ष 2009 शांदिल इशान के करियर का अहम वर्ष साबित हुआ। शांदिल इशान को एक सांस्क़तिक कार्यक्रम में उनकी लाजवाब कोरियोग्राफी के लिये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा सम्मानित किया गया। शांदिल इशान को इसके साथ ही भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर सम्मान, पाटलिपुत्र गौरव सम्मान समेत कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। डासिंग की
एक विद्या सालसा को बिहार में सही तरह से पेश करने वालो में सांदिल इशान एकमात्र कोरियोग्राफर हैं।
जुनूँ है ज़हन में तो हौसले तलाश करो
मिसाले-आबे-रवाँ रास्ते तलाश करो
ये इज़्तराब रगों में बहुत ज़रूरी है
उठो सफ़र के नए सिलसिले तलाश करो
शांदिल इशान बतौर अभिनेता भी अपनी पहचान बनाना चाहते थे और इसी को देखते हुये वह वर्ष 2012 में रंगमंच से जुड़ गये। शांदिल ने रंगमंच पर भी अपनी प्रतिभा का शानदार नमूना पेश किया और बैंड मास्टर , आज का सच और बुद्धम शरणम गच्छामि जैसे कई नाटको में अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। शांदिल इशान ने कहा कि विचारों को प्रकट करने का माध्यम रंगमंच से और कुछ बेहतर नहीं हो सकता है। अपनी अभिव्यक्ति लोगों तक पहुंचाने का इससे बेहतर कोई साधन हो ही नहीं सकता। युवा सबसे ज्यादा रंगमंच पर आकर्षित होते हैं। अंदर की छटपटाहट नाटक द्वारा ही व्यक्त हो सकती है। फिल्मों एवं टीवी में जाने का मार्ग रंगमंच से ही होकर गुजरता है। रंगमंच ऐसी विधा है इसमें प्रवेश करने वाला कोई भी कुछ हासिल करें या न ..करें। वह एक अच्छा इंसान जरूर बन जाता है। यहां समाज में हो रहे परिवर्तन को नजदीक से देखा जा सकता है। मानवता की डोर मजबूत होती है।वर्ष 2014 में शांदिल इशान को जमशेदपुर में हुये ऑल इंडिया डासिंग कंपटीशन में हिस्सा लेने का अवसर मिला और उन्होंने विजेता का ताज अपने नाम कर लिया।
बेहतर से बेहतर कि तलाश करो
मिल जाये नदी तो समंदर कि तलाश करो
टूट जाता है शीशा पत्थर कि चोट से
टूट जाये पत्थर ऐसा शीशा तलाश करो
वर्ष 2015 में शांदिल इशान ने भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में भी बतौर अभिनेता कदम रख दिया। फिल्म पिरतिया टूटे ना से शांदिल इशान ने अपने करियर की शुरूआत की। इसके बाद शांदिल ने प्रेम युद्ध और तिरंगा पाकिस्तान में जैसी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय और कोरियोग्राफी से दर्शकों का दिल जीत लिया। इसी दौरान शांदिल कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी की चपेट में आ गये।
कामयाबी के सफ़र में मुश्किलें तो आएँगी ही
परेशानियाँ दिखाकर तुमको तो डराएंगी ही,
चलते रहना कि कदम रुकने ना पायें
अरे मंजिल तो मंजिल ही है एक दिन तो आएगी ही।
मजबूत इरादों के धनी शांदिल इशान कैंसर की बीमारी को मात दे दी। तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।महान कवि हरिवंश राय बच्चन की रचित इन पंक्तियों को जीवन में उतारने शांदिल इशान ने कैंसर की बीमारी के दौरान ही शांदिल ने एक कहानी लिखी जिसपर वह इन दिनों फिल्म ये कैसी आशिकी बना रहे हैं। फिल्म के जरिये शांदिल इशान निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा है। शांदिल ने फिल्म में निर्देशन के साथ ही अभिनय भी किया है। शांदिल ने बताया कि ये कैसी आशिकी के जरिये दर्शकों को रूमानियत का नया अहसास देखने को मिलेगा। हर इंसान ने जीवन में कभी न कभी प्यार किया होता है और कई लोग ऐसे भी हैं जिनकी कहानी अधूरी भी रह जाती है। प्यार के अधूरे रहने पर इंसान किस हद को पार कर जाता है फिल्म के जरिये यह दिखाने की कोशिश की गयी है। शांदिल आज कामयाबी की बुलंदियों पर है। शांदिल अपनी सफलता का श्रेय परिवार वालों को खासकर बडे भाई ललन कुमार को देते हैं जिन्होंने उन्हें हर कदम सपोर्ट किया है। शांदिल इशान बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता आर्यन वैद का भी शुक्रिया अदा करना चाहते हैं जिन्होंने हर कदम उन्हें सपोर्ट किया है।
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