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350वें प्रकाशोत्सव पर दिखा सांस्कृतिक विविधताओं का समागम : शिवचंद्र राम
पटना : कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के द्वारा 350वें प्रकाशोत्सव के मौके पर राजधानी पटना में बड़े पैमाने पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के पांचवें दिन आज कलाकारों ने लोगों का भरपूर मनोरंजन किया। जहां मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार आज पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी के सहयोग से चित्र प्रदर्शनी बिहार संग्रहालय में आयोजित चित्र प्रदर्शनी देखने पहुंचे, वहीं, प्रेमचंद रंगशाला राजेंद्र नगर पटना में बतौर प्रथम दर्शक कला, संस्कृति विभाग के मंत्री श्री शिवचंद्र राम भी शामिल हुए।
कार्यक्रम में विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद, अपर सचिव आनंद कुमार, संस्कृति निदेशक सत्यप्रकाश मिश्रा, बिहार ललित कला अकादमी के अध्यक्ष आलोक धन्वा, आईपीएस हिमांशु त्रिवेदी, तारानंद वियोगी अतुल वर्मा, संजय कुमार, अरविंद महाजन, मोमिता घोष, राजकुमार झा और मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा भी उपस्थित रहे। गौरतलब है कि प्रकाशोत्सव के मौके पर कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार ने श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल, भारतीय नृत्य कला मंदिर, बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर, प्रेमचंद रंगशाला, रविंद्र भवन, बिहार संग्रहालय और बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स ऑडिटोरियम में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक कार्यक्रम व प्रदर्शनी का आयोजन किया है।
प्रेमचंद रंगशाला में पांचवें दिन की शुरूआत हिमांशु त्रिवेदी के काव्य पाठ से हुई। इसके पहले विभाग के मंत्री श्री शिवचंद्र राम ने कहा कि बिहार की ऐतिहासिक धरती गुरू गोविंद सिंह जी के 350वें प्रकाशोत्सव काफी हर्षोल्लास से मना रहा है। यह हर बिहारवासियों के लिए बड़े ही सौभग्य की बात है। उन्होंने कहा कि कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने बाहर से आए श्रद्धालुओं और दर्शन को अन्य लोगों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है, जिसमें एक स्थान पर गुरू गोविंद सिंह जी की जीवनी और देशभर के सांस्कृतिक विविधताओं का समागम है। वहीं, पटना के सुरेंद्र नारायण यादव ने रंग – ए – बिहार कार्यक्रम के तहत मैथिली लोकगीत जब तक सुग्गा वेद पढ़ावें चाकर शिव भगवान, तोहे जनी जाह विदेश और नवका नेवानक चुरा खोयेवऊं जैसे गीतों से लोगों का दिल जीत लिया। इसके बाद पटना के ही मनोरंजन ओझा, सत्येंद्र संगीत और नीतू कुमारी नूतन ने शानदार लोकगीतों की प्रस्तुति दी और पूनम ठाकुर ने उपशास्त्रीय गायन किया।
अनाद फाउंडेशन की ओर से श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में आज के कार्यक्रम की शुरूआत ठुमरी से हुई, जिसे पंडित राम प्रसाद मिश्रा ने प्रस्तुत किया और तबले पर पंडित मदन मोहन उपाध्याय ने तबले पर उनका साथ दिया। अवनर खान ने मनगानरस को वोकल, लक्खा खान ने सिंधी सारंगी, कचरा खान, गेवार खान ने कमलचा, फिरोज खान ने ढोलक और केते खान ने खरती पर परफॉर्म किया। इसके अलावा समरिन सन्याल ने महान साहित्यकार व नोबेल पुरूस्कार विजेता रविंद्र नाथ ठाकुर द्वारा गुरू गोविंद सिंह पर रचित कविता का पाठ किया। गुरिंदर हरनाम सिंह ने ख्याल- दसम बाणी की प्रसतुति दी, जिसमें उनके साथ तबला पर मदनील सिसोदिया, हारमोनिया पर ललित सिसोदिया, वोकल हरसिमरन कौर और सारंगी पर घनश्याम सिसोदिया ने दिया। सुखविंदर अमृत ने काव्य पाठ, सुवीर मिश्रा ने रूद्र वाणी और मोहनश्याम शर्मा ने पखावज पर संगीत के सुर छेड़े। अंत में, डॉ मदन गोपाल सिंह ने बाबा फरीद से बुल्ले शाह का भव्य सूफी गायन प्रस्तुत किया, जिसे देख हॉल में लोगों सूफीज्म के रंग सराबोर हो गए। सूफी गायन के दौरान डॉ मदन गोपाल सिंह का साथ गुरमीत सिंह ने तबला व ढोल, पीतम घोषल ने सरोद और दिलीप कैसटलोने ने गिटार पर दिया।
उधर रविंद्र भवन में लोक संगम कार्यक्रम के अंतर्गत दुर्ग, छत्तीसगढ़ से आई प्रेमाशीला ने पंडवानी, सोनभद्र यूपी के सोना ने गदरबाज, धार मध्यप्रदेश के गोविंद गहलौत ने भगौरिया, रांची की सृष्टिधर महतो ने पुरूलिया छऊ और पटना की इतु घोष ने झिझिया नृत्य पेश कर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। इसके अलावा भारतीय नृत्य कला मंदिर में भारत – भारती कार्यक्रम में झारखंड की प्राचीन संस्कृति शिकार प्रथा पर अधिरित शिकारी नृत्य का मंचन हुआ। प्रथा के अनुसार, झारखंड के लोगों के बीच साल में एक बार शिकार करने की प्रथा है। इसे सेंदरा कहते हैं। वन परिवेश में रचित इस परंपरा में शिकारी शिकार को नकलते हैं। बहुत असफलता के बाद जब शिकारी विलुप्त होते हिरण का शिकार करने के लिए आगे बढ़ते हैं, तब उनकी गृहिणयां उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं। आखिरकार गृहणियां सफल होती हैं और शिकारी शिकार न करने का प्रणाम लेते हैं। सनद रहे कि झारखंड में वन्य पशुओं की रक्षा करना जनजातीय संस्कृति की रक्षा है। राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र, खरसांवा झारखंड के कलाकारों ने इसकी प्रस्तुति दी।
वहीं, महाराष्ट्र से आए कलाकारों ने तमाश और लावणी नृत्य की प्रस्तुति दी। यह महाराष्ट्र में काफी मशहूर और लोकप्रिय कला है। तमाशा के लावणी प्रमुख वाद्य यंत्र हैं, साथ ही ढोलकी तुनतुना, मंजरी हार्मोनियम जैसे लोकवाद्य का भी इसमें इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि 350वें के प्रकाशोत्सव के अंतिम दिन कला, संस्कृति विभाग बिहार द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम का समापन गुरूवार को प्रेमचंद रंगशाला में बिहार गौरव गान के साथ होगा।
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