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ANKIT PIYUSH (https://www.facebook.com/ankit.piyush18
अपनी हिम्मत और लगन के बदौलत पंकज कुमार कपाड़िया ने बनाया शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान
खोल दे पंख मेरे, कहता है परिंदा, अभी और उड़ान बाकी है,
जमीं नहीं है मंजिल मेरी, अभी पूरा आसमान बाकी है,
लहरों की ख़ामोशी को समंदर की बेबसी मत समझ ऐ नादाँ,
जितनी गहराई अन्दर है, बाहर उतना तूफ़ान बाकी है…
अपनी हिम्मत और लगन के बदौलत पंकज कुमार कपाड़िया आज शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुये है लेकिन इन कामयाबियों को पाने के लिये उन्हें अथक परिश्रम का सामना भी करना पड़ा है। पंकज कपाड़िया अपने जीवन को इन पंक्तियों में संजाये हुये हैं। “ अपनी जमीन अपना विश्वास पैदा कर , जीवन में एक नया इतिहास पैदा कर , मांगे से कुछ कुछ मिला है ऐ मेरे दोस्त , कदम कदम कर एक नया इतिहास पैदा कर ”
बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में वर्ष 1987 में जन्में पंकज कपाड़िया ने वर्ष 2002 में औरंगाबाद से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की । उनके पिता सत्य नारायण प्रसाद और मां उर्मिला देवी उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे। हालांकि पंकज कपाड़िया को क्रिकेट के प्रति गहरी रूचि थी और वह क्रिकेटर बनना चाहते थे। वर्ष 2004 में पंकंज कपाडिया ने रांची से इंटर की परीक्षा उतीर्ण की और पिता की आज्ञा को सिरोधार्य मानकर इंजीनीयरिंग की तैयारी के लिये राजधानी पटना के सुपर 30 में दाखिला ले लिया। पंकज की मेहनत रंग लायी और वह आईआईटी में दाखिला लेने में कामयाब हो गये। पंकज कपाडिया वर्ष 2006 में दिल्ली चले गये और वर्ष 2010 में बीटेक किया। इस
दौरान उन्होने गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी। इसी दौरान उन्हें आईआईटी दिल्ली के निदेशक ने नेशनल सर्विस स्कीम (एनएनएस) 2007 को बेस्ट वॉलेंटियर का सम्मान दिया।
पंकज का कहना है कि समाज के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है इसलिए जरूरी है कि समाज के सभी लोग शिक्षित हो। शिक्षा ही विकास का आधार है। समाज के लोग ध्यान रखें कि वह अपने बेटों ही नहीं बल्कि बेटियों को भी बराबर शिक्षा दिलवाएं।वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षा की महत्ता सर्वविदित है. स्पष्ट है कि सामाजिक सरोकार से ही समाज की दशा एवं दिशा बदल सकती है।
जिंदगी में कुछ पाना हो तो खुद पर ऐतबार रखना
सोच पक्की और क़दमों में रफ़्तार रखना
कामयाबी मिल जाएगी एक दिन निश्चित ही तुम्हें
बस खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार रखना।
पंकज कपाडि़या का मानना था कि यदि आपको समाज से कुछ मिलता है तो उसे वापस करन देना चाहिये।पंकज यदि चाहते तो दिल्ली में काम करते हुये जीवन बसर कर सकते थे लेकिन वह कुछ अलग करना चाहते थे। लहरों के साथ तो कोई भी तैर लेता है ..पर असली इंसान वो है जो लहरों को चीरकर आगे बढ़ता है। पंकज अपने घर वर्ष 2014 में पटना वापस आ गये। वर्ष 2015 में पंकज कपाडि़या ने आईआईटीयन तपस्या के जूनियर विंग की भी स्थापना की जिसके जरिये आठवीं से दसवीं क्लास के बच्चों को शिक्षा दी जाती है। पंकज कपाडिया ने बताया कि उनसे शिक्षा प्राप्त कर 500 से अधिक लोगों का दाखिला आइआइटी में हो चुका है।
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती
पंकज कपाडिया ने अपने तीन मित्र प्रशांत चौबे , आकाश गोयल और रितेश सिंह के साथ मिलकर वर्ष 2014 में आइआइटीयन तपस्या की नींव रखी। पंकज ने बताया कि जीवन में सफल होने के लिये सबसे जरूरी चीज होती है तपस्या और इसी को देखते हुये उन्होंने अपनी कंपनी का नाम आईआईटीयन तपस्या रखा है। पंकज अपने छात्रों के साथ शिक्षक के साथ ही दोस्त की तरह व्यवहार करते हैं।
पंकज हर कदम उन्हें सपोर्ट करते है । पंकज अपने छात्रों से कहते हैं
जब टूटने लगे हौंसले तो बस ये याद रखना,
बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते,
ढूंड लेना अंधेरों में मंजिल अपनी,
जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते।
वर्ष 2017 में पंकज कपाड़िया को बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने गुरू-शिक्षा सम्मान से नवाजा। बचपन के दिनों से ही क्रिकेट से काफी प्यार करने पंकज बिहार के उन क्रिकेटरों को आगे लाना चाहते थे जिन्हें सही मंच नही मिल पा रहा था। भले ही पंकज बतौर क्रिकेटर अपनी पहचान नही बना सके लेकिन वह नवोदित क्रिकेटरों के लिये कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश रखते हैं
।जो लोग अपने सपने पूरे नहीं करते ना …..वो दूसरों के सपने पूरे करते हैं।बिहार की राजधानी पटना में हाल ही में सीसीएल 2 का आयोजन किया गया है। सीसीएल 02 का आयोजन अनुमाया ह्यूमन रिसोर्स फाउंडेशन (एचआरएफ) की ओर से मनीषा दयाल और चिरतंन कुमार संयुक्त रूप से किया ।सीसीएल 2 की परिकल्पना Say NO to DRUGS और Say NO to DOWRY को ध्यान में रखकर की गयी थी।पंकज कपाडिया ने आइआईटीयन तपस्या टीम भले ही सीसीएल 02 की ट्राफी जीत नही सकी लेकिन वह दृढ़ संकल्पित है कि आगामी सीजन में सीसीएल की ट्राफी उनके हाथ में होगी।
कामयाबी के सफ़र में मुश्किलें तो आएँगी ही
परेशानियाँ दिखाकर तुमको तो डराएंगी ही,
चलते रहना कि कदम रुकने ना पायें
अरे मंजिल तो मंजिल ही है एक दिन तो आएगी ही।
पंकज कपाडिया पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत एपीजे कलाम को अपना आदर्श मानते हैं। पंकज कपाड़िया इस बात को लेकर बेहद गौरान्वित महसूस करते हैं कि एक ही दिन यानी 15 अक्टूबर को हुआ है। पंकज को क्रिकेट के साथ ही शतरंज खेलने का भी बेहद शौक है। वह खाली समय में मशहूर पार्श्वगायक दिवंगत किशोर कुमार के गाये गीतों को सुनना पसंद करते हैं। पंकज कपाडिया अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और अपने शिक्षकों को देते हैं जिन्होंने उन्हें हर कदम पर प्रोत्साहित किया है। पंकज अपने माता-पिता को देखकर
भावुक हो जाते हैं और गुनगुनाने लगते है जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है जीत जायेंगे हम अगर आप संग हो , तुम साथ हो जब अपने दुनिया को दिखा देंगे , हम मौत को जीने का अंदाज सीखा देंगे।
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