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पटना : सिखों के दसवें गुरू श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के जन्मदिवस पर 350वें प्रकाशोत्सव में कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के द्वारा राजधानी पटना में बड़े पैमाने पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन बिहार गौरवगान के साथ हुआ। प्रेमचंद रंगशाला राजेंद्र नगर पटना में आयोजित समापन समारोह में कला, संस्कृति विभाग के मंत्री श्री शिवचंद्र राम, प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद, अपर सचिव आनंद कुमार, संस्कृति निदेशक सत्यप्रकाश मिश्रा, बिहार ललित कला अकादमी के अध्यक्ष आलोक धन्वा, तारानंद वियोगी, अतुल वर्मा, संजय कुमार, अरविंद महाजन, मोमिता घोष, राजकुमार झा और मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा भी उपस्थित रहे।
समापन समारोह को संबोधित करते हुए कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री श्री शिवचंद्र राम ने इस सफल आयोजन के लिए सभी का आभार जताया। उन्होंने कहा कि बिहार वासियों के लिए 350वें प्रकाश पर्व का आयोजन गौरवपूर्ण है। बिहार की पावन धरती देश – विदेश से आए श्रद्धालुओं की सेवा कर धन्य हो गया। इस पूरे उत्सव के जरिए दुनिया भर में गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के संदेश को फैलाने का सौभाग्य बिहार को मिला। राज्य सरकार और कला, संस्कृति विभाग बाहर से आये श्रद्धालुओं और कार्यक्रम को सफल बनाने में लगातार जुटे रहे अधिकारी व कार्याकर्ताओं के अलावा राज्य के लोगों का भी धन्यवाद। वहीं, विभाग के प्रधान सचिव श्री चैतन्य प्रसाद ने कहा कि प्रकाशोत्सव की सफलता हर बिहारी के लिए फर्क की बात है।
श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल पटना में पंजाबी गिद्धा का जबरदस्त प्रस्तुति ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के सदस्यों ने दी। वहीं, डॉ फ्रांसिस्का कैसियो ने गुरूबानी संगीत का ध्रुपद गयान किया, जिसमें उनके साथ सारंगी पर घनश्याम सिसोदिया और पखावज पर परमिंदर सिंह भरमा ने दिया। दाउद खान सदाजई रब्बा गायन किया, जिसका साथ तबले पर मदन मोहन उपाध्याय ने दिया। इसके अलावा भी देशभर के कलाकारों ने अपनी शानदार प्रस्तुति से लोगों का मनमोह लिया।
भारतीय नृत्य कला मंदिर में मालदा नाट्य मंच मंडल, उज्जन, मध्यप्रदेश द्वारा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग नाटक का मंचन किया गया। इस दल के नायक प्रेम कुमार सेन और नाटक के निर्देशक अनिकेत सेन थे। कुल 13 लोगों ने इस नाटय प्रस्तुति को लोगों के समक्ष पेश किया। उधर रविंद्र भवन में धार मध्यप्रदेश के गोविंद गहलौत ने भगोरिया जनजातीय नृत्य से सबका दिल जीत लिया। इसे भगोरिया नृत्य दल ने प्रस्तुत किया, जो मध्यप्रदेश के धार जिले अंचलों में रहने वाले लोगों द्वारा होली के एक सप्ताह पहले नृत्य को त्योहार की तरह मनाया जाता है। इसमें एक सप्ताह पहले युवक और युवतियां आकर्षक वस्त्रों में सुसज्जित होकर बड़े उमंग के साथ यह नृत्य करते हैं।
रविद्र भवन में ही एक अन्य कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के सोन भद्र से आए सोना के नेतृत्व में गदरबाजा नृत्य का आयोजन किया गया। इस नृत्य की खासियत ये है कि इसके कलाकार नृत्य करते – करते माटी की धूल में सन जाते हैं। मूल रूप से इस आदिवासी नृत्य को पुरूष जाति के ही लोग करते हैं। इसमें ढफली, सिंघाड़ा, डुग्गी, शहनाई, झाल, डंडे पर चढ़कर लोक कला का प्रदर्शन किया जाता है। लोगों ने बिहार के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत झिझिया नृत्य का भी जम कर आनंद लिया। झिझिया नृत्य मुख्यत: बिहार के मिथिलांचल की महिलओं द्वारा भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गीत गायन के साथ किया जाता है। मन्याताओं के अनुसार, बरसात के मौसम में बर्षा नहीं होने के कारण अकाल की स्थिति से सामना करता पड़ता था। इस दौरान ग्रामीण महिलाओं द्वारा मिट्टी के घड़े चारों ओर छिद्र कर और उसमें दीपक जला कर इस नृत्य को करती हैं। झिझिया नृत्य में कहीं – कहीं विरहा और कजरी के धुन भी समाहित होते हैं।
इसके अलावा झूमर लोकनृत्य की भी भव्य प्रस्तुति हुई। ग्रामीण परिवेश में झूमर लोकनृत्य और लोकगीत का प्रचलन वर्षों पुराना है। शादी – विवाह एवं अन्य कोई भी शुभ अवसर पर महिला मंडल द्वारा झूमर नृत्य देखने को मिलता है। इस नृत्य के जरिए पति पत्नी के बीच नांकझोंक या पति से अभूषणों की मांग की जाती है। वहीं, प्रेमचंद्र रंगशाला में बिहार संगीत नाटक अकादमी के द्वारा लोकनृत्य, इंद्रधनुष, प्रांगण लोकनृत्य, थारू जनजातीय नृत्य आदि का आयोजन किया गया।
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