अदब-ए-मौसिकी के दूसरे दिन संगीत और विमर्श का हुआ समागम
मल्लिक बंधु, स्वर्णमालया गणेश और पंडित सुरेश तलवालकर ने दी संगीत-प्रस्तुतियाँ संगीत के नामचीन विद्वान हुए विभिन्न परिचर्चा सत्रों में शामिल
पटना, 22 सितंबर
‘अदब-ए-मौसिकी’ संगीत महोत्सव के दूसरे दिन संगीतमय प्रस्तुतियों और संगीत पर गंभीर चर्चा का अद्भुत समागम देखने को मिला। शास्त्रीय संगीत की मधुर प्रस्तुति और संगीत-विमर्श के साहित्य पर आधारित यह दो दिवसीय कार्यक्रम आज समाप्त हो गया।
आज कार्यक्रम की शुरुआत निशांत मल्लिक और कौशिक मल्लिक द्वारा दरभंगा घराने के ध्रुपद गायन से हुई। दोनों ने राग परमेश्वरी और कबीर के पद ‘राम नाम में जो मूल हैं कहे कबीर समझाय’ की मनमोहक प्रस्तुति दी।
अगले सत्र ‘नजाकत, रिवायत, अदा : ठुमरी, गजल और तवायफ परंपरा’ में प्रसिद्ध संगीत लेखक अरुण सिंह, अखिलेश झा और विद्या शाह ने शिरकत की जबकि शंकर कुमार झा ने सत्र का संचालन किया। विद्या शाह ने भारतीय संगीत परंपरा में तवायफ़ों के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय संगीत की कई विधाएँ तवायफ़ों के जरिए ही विकसित और संरक्षित हुई हैं। अरुण सिंह ने तवायफ परंपरा के प्रसिद्ध कलाकारों की चर्चा करते हुए कहा कि तवायफ़ों के मानवीय मूल्य बहुत ऊंचे दर्जे के रहे हैं । वक्ताओं ने कहा कि तवायफ़ों को सुधि लोगों से तारीफ बहुत मिली लेकिन सामाजिक स्वीकृति नहीं मिल पायी। जिस प्रकार से घराना परंपरा ने भारतीय संगीत को समृद्ध किया उसी प्रकार तवायफ परंपरा भी भारतीय संगीत के विकास में अमूल्य रही।
अगले सत्र ‘देवप्रिया और देवदासी : फ्रोम इटर्नल टू क्लासिक’ में देवदासी परंपरा के संगीत की चर्चा हुई जिसमें बतौर वक्ता पवन कुमार वर्मा और सवर्णमाल्य गणेश उपस्थित रहे। पवन कुमार वर्मा ने देवदासी परंपरा की ऐतिहासिकता की चर्चा की और इसके संगीत पक्ष को स्पष्ट किया। स्वर्णमाल्य गणेश ने देवदासी परंपरा के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पक्ष की चर्चा की। इस सत्र का समापन स्वर्णमाल्य गणेश की नृत्य प्रस्तुति से हुआ।
चौथे सत्र “घराना: फ्रॉम वेयर दी म्यूजिक फ्लोस” में इरफान ज़ुबैरी, मीता पंडित , पद्मातलवाकर, अनीस प्रधान और अजित प्रधान ने भारतीय संगीत की घराना परंपरा पर चर्चा की। डॉ अजीत प्रधान ने कहा कि घराना परंपरा ने संगीत की धरोहर को आगे जरूर बढ़ाया पर परिवारवाद होने के कारण कई बार अयोग्य लोग भी घराना परंपरा में शामिल रहे, जिसका नुकसान संगीत को उठाना पड़ा। अनीश प्रधान ने घराना परंपरा की विचारधारा की बात की और कहा कि पलायन और प्रवर्जन के कारण घरानों का विस्तार अलग अलग क्षेत्रों में हुआ। उन्होने कहा कि भारतीय संगीत में घराने आत्मा के समान हैं। मीता पंडित ने कहा कि ‘घराने’ घर का पर्याय न बन जाएं, इस से बचने के लिए ‘परंपरा’ शब्द का इस्तेमाल बेहतर है। इस सत्र के दौरान मीता पंडित ने ‘जय जय जयदेव हरे’ गीत को ख्याल के रूप में गाया जबकि पद्मा तलवालकर ने ग्वालियर घराने का गीत प्रस्तुत किया।
5 वां सत्र “टॉकिंग अ नॉट: राइटिंग ऑन इंडियन क्लासिकल म्यूजिक”
में अनीश प्रधान , नमिता देवीदयाल और अखिलेश झा ने भारत में संगीत पर हो रहे लेखन की चर्चा की। नमिता देवीदयाल ने कहा कि संगीत पर लिखने वाले व्यक्ति को संगीतकार के आत्मा को पढ़ना पड़ता है। अनीश प्रधान ने कहा कि संगीत पर लिखने वाले व्यक्ति को उस समाज उस राज्य के कानून और धर्म को समझना जरूरी होता है। अखिलेश झा ने मेहँदी हसन पर लिखी किताब ‘मेरे मेहँदी हसन’ के बारे में श्रोताओ को बताया।
नमिता देवीदयाल ने कहा कि संगीत पर लिखने वालों को संगीत सभी पक्षों पर काम करना जरूरी हो गया है। अगले सत्र ‘रिवयती पूरब : अंग गायकी’ में इरफान जुबेरी ने शायरा बेगम और विद्या राव के साथ संगीत विधाओं पर चर्चा की। कार्यक्रम का अंत पंडित सुरेश तलवालकर के कंसर्ट ‘आवर्तन’ द्वारा हुआ। कंसर्ट में पंडित सुरेश तलवालकर ने तबले पर मनमोहक प्रस्तुति दी। ‘