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अपनी दिशा से भटक गई हैं भोजपुरी फिल्में : कुणाल सिंह

अपनी दिशा से भटक गई हैं भोजपुरी फिल्में : कुणाल सिंह
अपनी दिशा से भटक गई हैं भोजपुरी फिल्में : कुणाल सिंह

अपनी दिशा से भटक गई हैं भोजपुरी फिल्में : कुणाल सिंह

भोजपुरी भारतीय क्षेत्रीय सिनेमा का एक ऐसा अंग है जो हमारी बहुरंगी संस्कृति को उसके मूल स्वरूप में पेश करने की कोशिश कर रही है। भोजपुरी फिल्मों का कारोबार यूपी, बिहार, झारखंड के अलावा पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों में है। विकास की प्रारंभिक अवस्था को पार कर यह संक्रमण के उस दौर में पहुंच चुका है । अब उसे ये फैसला करना है कि वह विकास के किस रास्ते को चुने। वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अनूप नारायण सिंह ने भोजपुरी फिल्मों के महानायक कुणाल सिंह से जानने की कोशिश की है कि कैसा होना चाहिए भोजपुरी सिनेमा का स्वरूप? कुणाल एक मात्र कलाकार हैं जो अब तक 300 से भी ज्यादा भोजपुरी फिल्में कर चुके हैं। पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश…

प्रश्न : भोजपुरी सिनेमा क्यूं बन गया है अश्लीलता का प्रतीक?

-भोजपुरी फिल्मों को अश्लीलता का प्रतीक समझा जाने के पीछे कई कारण हैं। एक तो 2003 के बाद भोजपुरी फिल्मों की सफलता ने कई छोटे और सेक्सी फिल्मों के निर्माताओं को आकर्षित किया। उन्होंने समझा कम लागत में ज्यादा कमाई भोजपुरी फिल्मों से ही हो सकती है। ऐसे में उन लोगों ने भोजपुरी संस्कृति को समझे बगैर हिंदी फिल्मों के फॉर्मूला को ठूंस कर भोजपुरी फिल्मों का स्तर गिरा दिया। साथ ही बिना सेंसर के अश्लील प्राइवेट भोजपुरी एलबमों ने भी इन प्रोड्यूसरों को भ्रमित किया। नतीजा अश्लील गीतों की भरमार भोजपुरी फिल्मों में सफलता की गारंटी मानी जाने लगी।

प्रश्न : कैसे मिलेगा विश्व की सबसे बड़ी क्षेत्रीय भाषा के सिनेमा को सम्मान?

-सबसे पहले तो इसे भारत सरकार को भाषा का दर्जा देना होगा। इसके लिए उत्तरप्रदेश और बिहार के तमाम नेताओं को एकजुट होकर इसे स्वाभिमान की लड़ाई बनाकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाना होगा। यह होने पर समृद्ध भोजपुरिया साहित्य पर फिल्में बनाने से ही सम्मान मिलेगा।

प्रश्न : किस फिल्म से सादगी भरा भोजपुरी सिनेमा बन गया अश्लीलता का प्रतीक?

-फिल्मों का नाम लेना उचित तो नहीं होगा, लेकिन अश्लीलता का प्रतिक बनने के पीछे सबसे बड़ा योगदान प्राइवेट एलबमों का रहा। इसमें गायक द्विअर्थी गीत गाकर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचने का ख्वाब देखने लगे। मुख्य वजह यहीं है।

प्रश्न : भोजपुरी सिनेमा का सेलिंग प्वाइंट क्या है?

-हिंदुस्तान की आत्मा गांव में बसती है। यूपी और बिहार ही सही मायने में हिंदुस्तान की संस्कृति की असली पहचान है। हिंदुस्तानी फिल्मों में ब्लैक एंड व्हाइट के जमाने से ही भोजपुरी संवाद या भोजपुरी शब्दों या लोकधुनों का स्थान रहा है। किसी दूसरी भाषा में वो बात नहीं है जिसे सरलता पूर्वक पूरा हिंदुस्तान पचा सके। मेरा मानना है कि ग्रामीण परिवेश और उसकी सरलता ही हमारी यूएसपी होनी चाहिए।

प्रश्न : क्या भोजपुरी फिल्मों ने भोजपुरी लोगों की इच्छाओं, सफलताओं, समस्याओं को सार्थक ढंग से उठा पाने में कामयाबी हासिल की है?

-पहले की भोजपुरी फिल्म ने भोजपुरिया समाज को वो सबकुछ दिया जो चाहिए था। इसका सबूत है कि तब हमारी भोजपुरी फिल्मों को देखने के लिए पुरुष समाज के साथ साथ घर की महिलाएं भी बड़ी तादाद में दर्शक दीर्घा में मौजूद रहा करती थीं। लेकिन फिलहाल सच ये है कि आज भोजपुरी फिल्मों ने अपनी पहचान खो दी है। आज हिंदी फिल्मों की नकल करने में हम भोजपुरिया समाज का अपनापन, प्यार और स्नेह पूरी तरह खो चुके हैं। एक ही टिकट दर अगर हिंदी और भोजपुरी फिल्मों का हो तो हमें दर्शक तभी सराहेंगे जब हम अपनी पहचान के साथ दिखेंगे ना कि हिंदी फिल्मों की नकल करके।

प्रश्न : क्या भोजपुरी फिल्में सही दिशा में जा रही हैं या दिशा भटक गई हैं?

-बिल्कुल अपनी दिशा से भटक गई हैं भोजपुरी फिल्में। देखिए भोजपुरिया समाज की समस्याएं आज भी वहीं है जो पहले था। मसलन अशिक्षा, जात-पात, भ्रूण हत्या, नारी को हेय दृष्टि देखना और कमजोर समझना, दबंगई, अमीरी-गरीबी, बेरोजगारी इत्यादि। अत: हमें तकनीकी स्तर पर अपनी तरक्की साबित करते हुए इन समस्याओं के इर्द-गिर्द कहानी गढ़कर दर्शकों तक पहुंचाना होगा। नारी सशक्तिकरण की बात कहनी होगी तभी हम दूसरी भाषा की फिल्मों से अलग दिखेंगे। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण प्रकाश झा जी की फिल्में हैं। वो फिल्में जो बिहार झारखंड की पृष्ठभूमि पर बनती हैं और पूरा हिंदुस्तान उसे स्वीकार करता है। साथ ही एक बात और कहना चाहूंगा कि बिना प्रदेश की सरकारों के मदद के हम शायद यूं ही हर रोज जीते और मरते रहेंगे। सिनेमा हॉल में सौ करोड़ की लागत से बनी फिल्मों पर भी उतना ही टैक्स है जितना कि 1 करोड़ की लागत से बनी भोजपुरी फिल्मों पर। अत: दूसरे प्रदेशों में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों के लिए दी गई अनुदान राशि या टैक्स में सहायता की प्रक्रिया को यूपी और बिहार में भी लागू करना चाहिए। इन तमाम बातों से ही भोजपुरी फिल्मों का विकास हो सकता है। साथ ही दर्शकों को भी अश्लील फिल्मों का बहिष्कार करना चाहिए।

प्रश्न : हिंदी फिल्मों में कार्य करने वाले भोजपुरी भाषी क्षेत्र के कलाकार और भोजपुरी फिल्मों के संगठन इसके विकास के लिए क्या कर रहे हैं?

-मुझे नहीं लगता है कि वो भोजपुरी के विकास के लिए कुछ भी कर रहे हैं। कई कलाकार तो खुद को बिहारी कहने में भी शर्म महसूस करते हैं। ऐसे में वो क्या करेंगे भोजपुरी के विकास की बातें? सिर्फ राजनीतिक मचों पर ही खुद को बिहारी कहकर फायदा उठाने आता है, भोजपुरी के विकास के नाम पर वो नाक-भौं सिकुडऩे लग जाते हैं।

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Ankit Piyush

Ankit Piyush is the Editor in Chief at BhojpuriMedia. Ankit Piyush loves to Read Book and He also loves to do Social Works. You can Follow him on facebook @ankit.piyush18 or follow him on instagram @ankitpiyush.