बिहार रत्न सम्मान’ से सम्मानित हुये रवि कुमार
पटना 12 फरवरी प्रबंधन सलाहकार(मैनेजमेंट कंसलटेंट) और समाजसेवी रवि कुमार बिहार रत्न सम्मान से नवाजे गये हैं। संस्कृति फाउंडेशन एवं श्री पटन देवी जी गौ मानस सेवा संस्थान की ओर से ‘बिहार रत्न सम्मान’ समारोह का आयोजन राजधानी पटना के कालिदास रंगालय में किया गया। इस अवसर पर रवि कुमार को सामाजिक क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये बिहार रत्न सम्मान से नवाजा गया।
समाज में बदलाव लाने की जहाँ एक ओर हर कोई पहल करता है नज़र आता है, वहीं दूसरी ओर एक युवा उसे अपना परिवार समझकर समाज की बढ़ोतरी के लिए अग्रसर है। रवि कुमार को आज पटना के हर स्वयंसेवी और ज़रूरतमंद लोग जानते हैं। मूलतः पहसारा(बेगूसराय) के निवासी रवि कुमार का मानना है कि हर एक जीवन जो धरती पर है एक अच्छी ज़िन्दगी का हक़दार है। पेशे से सामाजिक उद्यमी रवि, ने शिक्षा भले ही राज्य से बहार प्राप्त की हो मगर उनके दिल में बिहार की धरती के लिए ख़ास जगह है। वे एक प्रबंधन सलाहकार(मैनेजमेंट
कंसलटेंट) होने के साथ ही कई अन्य कंपनियो के मालिक हैं। चाहे वो मार्क अप बिज़नस सोल्युशन हो या आर वी इवेंट्स एंड एंटरटेनमेंट हो या उनका ब्लॉगिंग वेबसाइट ब्रैट ब्लॉगर्स। इतने कार्यों में व्यस्तता के बाद भी वें समाज को नहीं भूलते और इसलिए उन्होंने अपनी एक संस्था भी बनाई है सेवा सौभाय के नाम से। हर साल दिवाली पर अनाथ आश्रम के बच्चों के साथ त्यौहार को मनाना हो या फ़िर वृद्धाश्रम में बुजुर्गों को मिलने जाना हो।
सड़क किनारे बीमार एवं घायल पशुओं की इलाज और देखभाल से लेकर,गंगा घाटों की सफ़ाई और ज़रूरतमंदों को कपड़े बाटना, हर जगह आप रवि कुमार को पाएंगे। बीते दिनों बाढ़ के दौरान ख़ुद जलमग्न होने के बावजूद एन डी आर एफ के साथ लोगों को उनके घरों से निकाल सुरक्षित जगह पहुँचाया और रहत सामग्री का वितरण किया। वे एक लेखक भी हैं और सामाजिक दृष्टिकोण और कुप्रथाओं के ऊपर एक किताब भी लिख रहे हैं। इससे पहले भी उन्होंने अपनी लेखनी को लोगों तक पहुँचाया है और ये एहसास दिलवाया है कि इंसान होने का असल मतलब ज़रूरतमंदों की सहायता ही है। रवि कुमार का मानना है कि समाज का हर व्यक्ति अगर एक दूसरे की सहायता करे तो एक बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। ज़रूरत है तो बस हर कुप्रथा को दरकिनार करके हर किसी को अपना समझने की। अपनी एक सुंदर रचना को साझा करते हुए उन्होंने ये स्पष्ट कर दिया कि उनकी परवाज़ यहाँ तक सीमित नहीं है।
“आरज़ू नहीं कि मैं कोई तारा बनूँ,
न उन सितारों से दामन तमाम भरना है।
रूह मेरी बसती है इस गुलिस्ताँ में,
अभी मुझे इस चमन को और भी शादाब करना है।”
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