देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद की स्मृतियां संजोने की जरूरत : संपूर्ण चित्रांश चेतना मंच
पटना 18 जुलाई संपूर्ण चित्रांश चेतना मंच के अध्यक्ष राजन सिन्हा देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद की स्मृतियों को संजोने की जरूरत पर बल देते हुये कहा कि उन्होंने अपनी शिक्षा एवं ज्ञान से देश के सर्वोच्च पद को प्राप्त किया था और उनके संदेशों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की जरूरत है। श्री राजन सिन्हा ने कहा कि देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद… बिहार विभूति और देश की माटी से जुड़े सादगी की मिसाल एक शख्सियत थे जो स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बने। वह देश के एकमात्र राष्ट्रपति रहे, जिन्होंने पद से हटने के बाद बंगले को छोड़ जर्जर खपरैल कुटिया जैसे मकान को आशियाना बनाया। वर्ष 1921 से 1946 तक वे बिहार विद्यापीठ परिसर स्थित एक खपरैल मकान में रहे।बतौर राष्ट्रपति दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में 12 साल रहने के बाद वे फिर 1962 को पटना आकर बिहार विद्यापीठ परिसर स्थित उसी मकान में रहे। राजेन्द्र बाबू के निधन के बाद आज वहां राजेंद्र संग्रहालय बना हुआ है। श्री सिन्हा ने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद आज हमारे बीच नहीं हैं।
लेकिन महानता एवं ऊंचाई के बावजूद जमीन से जुड़ा सादगी भरा उनका जीवन एक संदेश के रूप में आज भी जिंदा है। अपनी सादगी की इस ताकत से उन्होंने दिलों को जीता। यही कारण है कि राजनीति की अलग-अलग धाराओं के बावजूद उनके आलोचक शायद ही मिलें।वे गुदडी के लाल और सादगी की प्रतिमूर्ति थे। गरीबी और अभाव में बचन गुजारने के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा एवं ज्ञान से देश के सर्वोच्च पद को प्राप्त किया था।देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद ही
उनके संदेशों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने की जरूरत है, अन्यथा आने वाले समय में युवा विश्वास नहीं कर पायेंगे के उनका जीवन इतना सादगी भरा था।डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार राजनेता होने के साथ-साथ एक सच्चे देश भक्त थे। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए स्वतंत्रता के कई आंदोलनों में अपना सहयोग दिया था।
संपूर्ण चित्रांश चेतना मंच के अध्यक्ष ने कहा राजेंद्र स्मृति संग्रहालय में राजेन्द्र बाबू की स्मृतियां संजो कर रखी हुई हैं।उन्होंने कहा देश के प्रथम राष्ट्रपति होने के नाते आज भी राजेन्द्र प्रसाद का देश की जनता उतना ही मान सम्मान है, जितना आजादी के दौरान था.लेकिन अब सरकारे उन्हें सिर्फ मान सम्मान ही दे रही है, उनसे जुड़ी अतीत के धरोहरों को संजोने में सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद की स्मृतियों को संजोने के लिए केंद्र सरकार और बिहार सरकार ने कुछ भी नहीं किया है। संग्रहालय का दुर्भाग्य है कि इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं है। यह संग्रहालय उपेक्षित है। उनकी यादें यहां के जिस कमरे के जर्रे-जर्रे में हैं, उसकी हालत आज बेहद जर्जर है। हम राज्य और केन्द्र सरकार से बिहार विभूति राजेन्द्र प्रसाद की स्मृतियों को संजाने की मांग करते हैं
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