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बिहार के फिल्म मेकर मिलकर बनाएं अच्छी फिल्म : नरेंद्र झा
पटना : बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम और कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार द्वारा आयोजित पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 में हैदर और फोर्स – 2 फेम नरेंद्र झा ने कहा कि सिनेमा मूलत: आज बाजार से प्रभावित है और बाजार के हिसाब से सिनेमा ने बिहार की तमाम नकारात्मकता को भुना दिया है। क्योंकि निगेटिव हमेशा आकर्षित करती है और इससे बाजार को मुनाफा होता है। इसलिए आज सिनेमा के फोकस से बिहार बाहर है। सिनेमा में बिहार की छवि विषय पर चर्चा के दौरान श्री झा ने कहा कि सिनेमा समाज का आइना होता है, उसके जरिए खुद को देखना जरूरी है। बिहार में सिनेमा के नाम पर भी भोजपुरी, अंगिका, मैथिली, मगही का बंटवारा है, मगर महाराष्ट्र में बनने वाली फिल्में सिर्फ मराठी होती हैं। इस चीज को भी समझना होगा।
मधुबनी के कोयलख गांव से आने वाले नरेंद्र झा ने कहा कि दूसरे फिल्म फेस्टिवल में चर्चा होती है कि सिनेमा की पहुंच कहां है, लेकिन आज भी हम अपनी इमेज को लेकर लड़ रहे हैं। इससे बेहतर होता कि बिहार के सभी फिल्म मेकर और कलाकार एक साथ बैठ कर बिहार की खूबियों पर चर्चा करते और अच्छी फिल्में बनाते। उन्होंने कहा कि दूसरे प्रदेशों में बेटियां मार दी जा रही हैं, दंगे होते हैंं, लेकिन बिहार इन सब मामलों से उनसे अलग है। तो क्यों नहीं यहां के फिल्म मेकर यहीं की कहानियोंं पर फिल्म बनाते हैं? क्या हम एक साथ आकर अपनी सांस्कृतिक विविधताओं को दुनियां के सामने नहीं ला सकते ? यही सही समय है जब हम अपनी कहानियों पर इंटरनेशन लेवल की फिल्में बना सकते हैं।
‘शुरूआत में कला निजी मामला होता है, जो पब्लिक होने पर दो तरफा हो जाता है।’ ऐसा मानना है चक दे इंडिया फेम शिल्पा शुक्ला का। शिल्पा कहती हैं कि बिहार में अभी बहुत सी समस्याएं है, लेकिन इसमें भी बहुत कुछ सकारात्मक कहानियां छुपी हैं। आज जरूरत है उन कहानियों को अहमियत देने की, ताकि हम ऐसा जेनरेशन तैयार कर सके, जिसका विजन पॉजिटिव हो। इसलिए यही सही समय है, फैक्ट को स्वीकार कर एक नए आयाम की ओर बढ़े। कहानियां यहां भी बहुत हैं, बस उसके आयाम को एक दिशा देने की जरूरत है। सिनेमा में औरत के भूमिका पर कहा कि बिहार की महिलाएं काफी स्ट्रांग और सॉलिड होती हैं। बिहार की महिलाएं हर क्षेत्र में अच्छा कर रही हैं, पता नहीं सिनेमा में पीछे क्यों है।
वहीं, कथाकार श्री शैवाल ने चर्चा के दौरान कहा कि अच्छा बिहार या खराब बिहार दिखाने के लिए मैंने कहानी नहीं लिखी। हम लिखते समय ऐसा सोचते भी नहीं हैं। क्योंकि कहानी मर्म के हिसाब से जीवीत रहती है। जब किसी समुदाय में संघर्ष का ठहराव होता है, तब दामुल जैसी कहानी उसे फिर से संघर्षरत करती है। दामुल और मृत्युदंड जैसे फिल्मों की कहानी लिखने वाले शैवाल ने कहा कि उनकी प्रकाश झा से मुलाकात कविता के माध्यम से हुई। फिर दामुल के दौरान तीन सालों तक हमने संवाद पर काम किया। फिर भी फिल्म के संवाद में जैसे चमार, नीची जात जैसे शब्दों पर लोगों ने आपत्ति जाहिर की। उन्होंने कहा कि अगर ये शब्द उस संवाद में ना होते तो कहानी सही से कही नहीं जा सकती थी। अभिनेता पंकज झा ने कहा कि बिहार में फिल्मों पर चर्चा हो रही है, जो अपने आप में सकारात्मक पहलू है। बिहारी लोग इतने सीधे होते हैंं कि लोग इसे टेढ़ा समझते हैं। हर आदमी का अपना बिहार है और जो जैसा है उसके लिए बिहार वैसा है। सिनेमा में बिहार की कमियों को मसाला बनाकर बेचा जाता है। उन्होंने कहा कि इसलिए बाहर के लोग क्या कहते हैं, इसकी चिंता छोड़कर खुद की चिंता करनी चाहिए। बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम ने बिहार सरकार की जल्द आने वाली नई फिल्म के कुछ पहुलों पर भी विस्तार से चर्चा की। इस सत्र को मॉडरेट फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने किया।
अच्छी स्क्रीप्ट पर बनी फिल्में ही होती सफल : तेजल चौधरी
उधर, रविंद्र भवन में ओपेन हाउस डिबेट में भोजपुरी इंडस्ट्री में डेब्यू कर रही मराठी अभिनेत्री तेजल चौधरी ने कहा कि अचछी स्क्रीप्ट पर बनी फिल्में ही हिट होती है। सैराट ने अच्छा करोबार किया, क्योंकि उसकी पटकथा लोगों से खुद को कनेक्ट करती है। तेजल ने भोजपुरी फिल्मों के बारे में कहा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। ये निर्भर आप पर करता है कि आप उसे किस तरह से लेते हैं। मैं आज सकारात्मक सोच की वजह से भोजपुरी से जुड़ी और पटना फिल्म फेस्टिवल की हिस्सा बनी। कोई भी इंडस्ट्री तो इंडस्ट्री होती है। मगर अच्छी फिल्में ही लोगों को पसंद भी आती है और बॉक्स ऑफिस पर बड़ा करोबार करती है। वहीं, फिल्म मेकर राहुल कपूर ने कहा कि भोजुपरी इंडस्ट्री में भी अच्छी फिल्में बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। कमियां हैं, लेकिन कई बार हम सुनी – सुनाई बातों पर ही भोजपुरी को नकार देते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक इंडस्ट्री से प्रपोजल बना कर सोचने की परंपरा खत्म नहीं होगी तब तक भोजपुरी का उद्धार नहीं होगा। साथ ही थियेटरों की कमी भोजुपरी फिल्में के पिछड़़ने के लिए जिम्मेवार है।
वहीं, फिल्म मेकर अभिलाष शर्मा ने कहा कि सिनेमा के पीछे सोच का होना जरूरी है। आज सिनेमा में भाषाई डिविजन है, मगर मेरे लिए सिनेमा सिर्फ अच्छा या बुरा है। इसलिए लोग जब बुरी फिल्मों को नकारेंगे तो वैसी फिल्में आनी खुद बंद हो जाएगी। मैं समझता हूं जो सच के करीब ले जाए, वही सिनेमा है चाहे भाषा कोई भी हो। आज भी जिनके अंदर जुनून है वो रास्ता निकाल लेंगे। सच ही आपकी पहचान बनती है। पत्रकार अवधेश प्रीत ने कहा कि आज के फिल्मकारों को कंटेंट में बदलाव के लिए बिहार में लिखी रचनात्मक कहानियों से इंसपरेशन लेना पड़ेगा। भोजुपरी ही आज सिंगल थियेटर को बचा रही है। क्यों ऐसा है कि शैवाल जैसे लेखक भोजपुरी मेकरों को नहीं दिखते, मगर वे कहते हैं कि अच्छी कहानियों का अभाव है। इस दिशा में भी फिल्म मेकरों को ध्यान देना होगा।
इससे पहले आज पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 के दौरान रिजेंट सिनेमा में अंतरद्वंद, बोकुल, स्कूटिंग फॉर जेब्राज का प्रदर्शन हुआ। वहीं, रविंद्र भवन के दूसरे स्क्रीन पर भोजपुरी फिल्म होगी प्यार की जीत, रणभूमि और अचल रहे सुहाग दिखाई गई। इसके अलावा तीसरे स्क्रीन पर परशॉर्ट एवं डॉक्यमेंट्री फिल्मों भी दिखाई गई। अंत में सभी अतिथियों को बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार ने शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस दौरान बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम की विशेष कार्य पदाधिकारी शांति व्रत भट्टाचार्य, अभिनेता विनीत कुमार, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, मनोज राणा, अजीत अकेला, फिल्म फेस्टिवल के संयोजक कुमार रविकांत, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा मौजूद रहे।
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