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पीयू कैम्पस में कभी बजता यादवों का डंका, इस बार है सुनहरा मौका

BHOJPURI MEDIA ANKIT PIYUSH पीयू कैम्पस में कभी बजता यादवों का डंका, इस बार है सुनहरा मौका   सुजीत कुमार पीयू कैंपस में वापस ला सकते हैं यादवों की खोई प्रतिष्ठा पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ कभी यादवों का डंका बजता था, लेकिन इसमें लालू प्रसाद यादवों के अंतिम अध्‍यक्ष बने। अब उसी खोई प्रतिष्ठा को […]

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ANKIT PIYUSH

पीयू कैम्पस में कभी बजता यादवों का डंका, इस बार है सुनहरा मौका

 

सुजीत कुमार पीयू कैंपस में वापस ला सकते हैं यादवों की खोई प्रतिष्ठा

पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ कभी यादवों का डंका बजता था, लेकिन इसमें लालू प्रसाद यादवों के अंतिम अध्‍यक्ष बने। अब उसी खोई प्रतिष्ठा को वापस करने का समय आ गया है, जब पीयू कैंपस में यादवों की खोई प्रतिष्‍ठा वापस हो सकती है। इस बार अध्‍यक्ष पद के लिए यादव जाति से सिर्फ एक उम्‍मीदवार है, जो जन अधिकार छात्र परिषद की ओर से लड़ रहा है। इसलिए यादव फूट मत की राजनीति से दूर रहे, तो इस बार अध्‍यक्ष पद पर उनकी जीत तय है। यादवों को सामाजिक न्याय का वाहक माना जाता है और यहां हर धर्म और जाति के लोगों को सम्मान मिलता है। इस वजह से अगर देखा जाय तो सुजीत कुमार पीयू कैम्पस में यादवों की खोई प्रतिष्ठा को वापस ला सकते हैं। इसके लिए यादवों वोट फूट मत से बचना होगा।

मालूम हो कि पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ 2018 का चुनाव 5 दिसम्बर को होना है और इसके लिए आज प्रेसिडेंसियल डिबेट है। सभी दलों के उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत के लिए पूरी शक्ति लगा दी है, मगर पीयू में आज भी जीत का मंत्र जातिगत समीकरण है। तभी तो पिछले चुनाव में दो यादव उम्मीदवार के बीच एक भूमिहार उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। ऐसा माना जाता है कि बिहार की राजनीति में सत्ता की धुरी यादव और भूमिहार ही रहा है, जिसका असर पीयू कैम्पस में भी खूब देखने को मिलता है। यही वजह है कि कभी पीयू कैम्पस में सामाजिक न्याय को साथ लेकर चलने वाले यादव जाति का दबदबा होता था, मगर बिहार में लालू यादव के सत्ता में आने के बाद यूनिवर्सिटी पॉलिटिक्स में यादव कैम्पस से यादवों को पकड़ कमजोर होने लगी।

इसी बीच पीयू में छात्र संघ चुनावों पर ग्रहण लग गया, और लंबे समय तक चुनाव हुए ही नहीं। उसके बाद सन 2012 में छात्र संघ चुनाव कराया गया। तब तक यूनिवर्सिटी की राजनीति से यादवों की पकड़ लगभग छूट चुकी थी। उस वक़्त चुनावी मैदान में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उम्मीदवार आशीष सिन्हा और आइसा की उम्मीदवार दिव्या गौतम के बीच कड़ा मुकाबला था। इसमें आशीष सिन्हा ने बाजी मारी थी, जो जाति से कायस्थ हैं और कुम्हरार के भाजपा विधायक अरुण सिन्हा के बेटे हैं। वहीं, दिव्या गौतम भूमिहार जाति से आती है। दोनों के बीच कड़ी टक्कर थी, मगर यहां यादवों की दावेदारी नगण्‍य थी।

लेकिन एक बार फिर से पीयू में 5 साल तक कोई चुनाव नहीं हुआ। 5 साल बाद जब राजभवन से चुनाव की अधिसूचना जारी हुई, तब तक कैम्पस में यादव राजनीति सक्रिय हो चुकी थी। मगर दुर्भाग्य इस बार भी यादवों की पीयू कैम्पस में एंट्री नहीं हो पायी। क्योंकि इस चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए दो यादव उम्मीदवार अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे, जिसके मुकाबले एक भूमिहार उम्मीदवार मैदान में था। यादव उम्मीदवार में जन अधिकार छात्र परिषद की ओर से गौतम आनंद और छात्र राजद से राहुल यादव चुनाव मैदान में थे। गौतम यह चुनाव लगभग सवा सौ वोट से हारे, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दिव्यांशु भारद्वाज जीते। दिव्यांशु भूमिहार है। वहीं राजद के राहुल यादव को 700 से ज्यादा वोट मिले, जो पीयू कैम्पस में यादव वापसी के लिए घातक साबित हुआ। इस चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अध्यक्ष पद पर यादव उम्मीदवार को ही उतारा था, जो बुरी तरह हार गए।

अब एक बार फिर से पीयू में छात्र संघ चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। 5 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं। इस बार का चुनावी समीकरण बदला है। इस बार चुनाव में हिंसा की खबरें भी आ रही हैं। पिछले दो चुनाव में फ्रेम से बाहर रही छात्र जदयू वाइब्रेशन मोड में है, क्‍योंकि जदयू में शामिल हुए रणनीतिकर प्रशांत किशोर की भूमिका अहम है। पीयू कैम्पस में उपेक्षित चल रही जदयू को पीके ने जगाया। इस चुनाव में कहीं न कहीं पीके की प्रतिष्ठा भी दांव पर है और जदयू में आने के बाद उनका पहला एग्जाम है। इसलिए उन्होंने पिछले चुनाव के नतीजों को ध्यान में रखकर भूमिहार जाति से आने वाले मोहित प्रकाश को उम्मीदवार बनाया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी अध्यक्ष पद के लिए भूमिहार उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। और यादव उम्मदीवार के रूप में सिर्फ जन अधिकार छात्र परिषद के सुजीत यादव हैं। ऐसे में अगर सामाजिक न्‍याय को ध्‍यान में रखकर वोटिंग होती है, तो यादव उम्‍मीदवार को जीतने से कोई रोक नहीं सकता।