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ANKIT PIYUSH (https://www.facebook.com/ankit.piyush18
मेहनत और लगन से खास पहचान बनायी रवीन्द्र कुमार ने
अपने मनोबल को इतना सशक्त कर, कठिनाई भी आने से न जाए डर। आत्मविश्वास रहे तेरा हमसफर, बड़े-बड़े कष्ट न डाल पाएं कोई असर।। हौसला अपना बुलंद कर लो,साहस व हिम्मत को संग कर लो। निर्भय होकर आत्मविश्वास से बढ़ो, संयम व धैर्य से सफलता की सीढ़ी चढ़ो।
हार न मानने का जज्बा तुम्हें उठाएगा, तुम्हारा अडिग हौसला तुम्हें बढ़ाएगा। आखिरकार देखना तुम्हारे आगे, धरती हिल जाएगी, आसमां झुक जाएगा।
बिहार के नवोदित कलाकारों को कामयाबी की राह दिखाने वाले रवीन्द्र कुमार की ज़िन्दगी संघर्ष, चुनौतियों और कामयाबी का एक ऐसा सफ़रनामा है,जो अदम्य साहस का इतिहास बयां करता है। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया और हर मोर्चे पर कामयाबी का परचम लहराया।
मां सीता की जन्मभूमि बिहार के सीतामढ़ी जिले में वर्ष 1970 में जन्में घर के बडे बेटे और सबके लाडले रवीन्द्र कुमार के पिता श्री
बैजनाथ प्रसाद और मां श्रीमती सुनैना देवी उन्हें उच्चअधिकारी के तौर देखने की ख्वाहिश रखती थी। बचपन के दिनों से ही रवीन्द्र कुमार की रूचि गीत-संगीत और सिनेमा के प्रति थी और वह स्टार बनने का सपना देखा करते। महानायक अमिताभ बच्चन को आदर्श मानने वाले रवीन्द्र कुमार को फिल्म परवरिश इतनी अधिक पसंद आयी कि उन्होंने चोरी छुपे यह फिल्म 20 बार से अधिक बार देख डाली हालांकि इसके लिये उन्हें परिवार वालों से काफी डांट भी सुननी पड़ी थी। वर्ष 1986 में पदमा खन्ना अभिनीत भोजपुरी फिल्म की शूटिंग सीतामढ़ी में हो रही थी। रवीन्द्र कुमार शूटिंग देखने के लिये पहुंच गये। रवीन्द्र कुमार रूपहले पर्दे पर खुद को देखना चाहते थे। फिल्म में एक बारात का सीन फिल्माया जाने वाला था। रवीन्द्र कुमार ने देखा कि बारात के सीन में हाथी भी है उन्होंने सोंचा यदि वह हाथी के बगल में खड़े हो जायें तो संभवत फिल्म में वह सीन डाला जाये। इसे रवीन्द्र कुमार की खुशकिस्मती माना जाये कि जब फिल्म माई रिलीज हुयी तो हाथी के साथ वह भी खड़े नजर आये।
वर्ष 1990 रवीन्द्र कुमार के जीवन के लिये अहम मोड़ साबित हुआ। रवीन्द्र कुमार , सुनैना देवी के साथ विवाह के अटूट बंधन में बंध गये।इसी वर्ष स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद रवीन्द्र कुमार ने सिविल सर्विस की तैयारी शुरू की। उन्होंने बीपीएससी की मेन्स को पास किया हालांकि वह ओरल में छंट गये। इसके बाद उन्होंने दारोगा के लिये मेन्स और पीटी दोनो निकाला लेकिन बदकिस्मती से इस बार भी वह ओरल में पास नही हो सके। रवीन्द्र कुमार ने तय कर लिया कि वह अब आगे नौकरी की तैयारी नही करेंगे। नियती को शायद यही मंजूर था कि उन्हें नौकरी नही कर फिल्म इंडस्ट्री में ही प्रवेश करना था।
खोल दे पंख मेरे, कहता है परिंदा, अभी और उड़ान बाकी है,
जमीं नहीं है मंजिल मेरी, अभी पूरा आसमान बाकी है,
लहरों की ख़ामोशी को समंदर की बेबसी मत समझ ऐ नादाँ,
जितनी गहराई अन्दर है, बाहर उतना तूफ़ान बाकी है…
वर्ष 1995 में आंखो में बड़े सपने लिये बतौर अभिनेता बनने का ख्वाब लिये रवीन्द्र कुमार मायानगरी मुंबई आ गये जहां वह अपने मौसा सुरेश चौधरी के साथ रहने लगे। इसी दौरान उनकी मुलाकात जाने माने निर्देशक मनमोहन साबिर के साथ हुयी और वह उनके सहायक के तौर पर काम करने लगे। सहायक के तौर पर रवीन्द्र कुमार ने शेयर बाजार , 500 का नोट , वक्त वक्त का बादशाह समेत कई फिल्मों में काम किया। इसी दौरान रवीन्द्र कुमार को डीडी 02 पर प्रसारित होने वाले सीरियल कुंती में काम करने का अवसर मिला।रवीन्द्र कुमार ने सीरियल में चर्च की पादरी की सशक्त भूमिका से लोगों का दिल जीत लिया।रवीन्द्र कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बनाना
चाहते थे लेकिन यह संभव नही हो पा रहा था। रवीन्द्र कुमार अपनी जन्मभूमि बिहार को कर्मभूमि मानते हुये वर्ष 2005 में राजधानी
पटना आ गये।
आज बादलों ने फिर साज़िश की
जहाँ मेरा घर था वहीं बारिश की
अगर फलक को जिद है ,बिजलियाँ गिराने की
तो हमें भी ज़िद है ,वहीं पर आशियाँ बनाने की
रवीन्द्र कुमार ने पटना में फिल्मों के लिये लाइटिंग सेट लगाने का व्यवसाय शुरू किया। उन दिनों बिहार में लाइटिंग सेट उपलब्ध नही होने की वजह से फिल्मों की शूटिंग नही हो पाती थी। रवीन्द्र कुमार के इस कदम से भोजपुरी सिनेमा के कलाकार पवन सिंह , रवि किशन , खेसारी लाल यादव ,मनोज तिवारी समेत दिग्गज कलाकार अब बिहार में भी शूटिंग करने लगे। देखते ही देखते रवीन्द्र कुमार अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। उनके लाइटिंग सेट न सिर्फ बिहार में बल्कि उत्तर प्रदेश ,झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी आपूर्ति किये जाने लगे। रवीन्द्र कुमार को अब फिल्मों में काम करने के प्रस्ताव मिलने लगे ।रवीन्द्र कुमार ने मुंबई और बिहार में कलाकारों के
संघर्ष को करीब से देखा था। जो लोग अपने सपने पूरे नहीं करते ना …..वो दूसरों के सपने पूरे करते हैं। इस बात को चरितार्थ कर दिखाया रवीन्द्र कुमार ने ।रवीन्द्र कुमार ने अपने अधूरे सपने नवोदित कलाकारों में देखने शुरू किया और उन्होने बिहार की नवोदित प्रतिभाओं को आगे ले जाने का काम किया।
जिंदगी में कुछ पाना हो तो खुद पर ऐतबार रखना
सोच पक्की और क़दमों में रफ़्तार रखना
कामयाबी मिल जाएगी एक दिन निश्चित ही तुम्हें
बस खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार रखना।
वर्ष 2013 में रवीन्द्र कुमार निर्देशन के क्षेत्र में आ गये ।रवीन्द्र कुमार ने सूर्यपुरी फिल्म अमार कसम का निर्देशन किया। इसके बाद रवीन्द्र
कुमार ने भोजपुरी फिल्म खनके कंगना तोहरे अंगना और भौजी के दुलरवा का भी सशक्त निर्देशन किया। । रवीन्द कुमार ने अपने करियर के दौरान कई अलबम का निर्माण किया है जिनमें मुझको दर्शन दे दे , आर्शीवाद देवी मइया की , पूरा सावन होई जैसा , गोकुल बाग वाली माता समेत कई अन्य शामिल है। रवीन्द्र कुमार इन दिनों अपने मेगा प्रोजेक्ट डोमकच के निर्माण की तैयारी कर रहे हैं। रवीन्द्र कुमार फिल्म का निर्देशन भी करेंगे। यह फिल्म बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित होगी। वर्ष 2013 में रवीन्द्र कुमार की काबलियत को देखते हुये उन्हें बिहार में फिल्म एंड टीवी डेवलपमेंट ऐशासियेशन का अध्यक्ष बनाया गया। इस संस्था का उद्देश्य कलाकारो को हर संभव मदद करने का है। रवीन्द्र कुमार ने बताया कि फिल्म माही के सेट एक कलाकार काम करते हुये बेहोश हो गयी थी । इलाज के दौरान पता चला कि उसे ब्रेन टयूमर है। ऐशासियेशन की तरफ से उसे हर संभव सहायता दी गयी। वर्ष 2016 में रवीन्द्र कुमार मुंबई के शिवसेना की बिहार में शाखा चित्रपट सेना के अध्यक्ष चुने गये। चित्रपट सेना के द्वारा कलाकारों को कार्ड निगर्त किया जाता है जिसके बाद ही वह किसी फिल्म में काम कर सकते हैं।
रवीन्द्र कुमार को उनके करियर में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये जी सागर मेमोरियल आर्ट सम्मान , कंचन रत्न सम्मान ,म्यूजिक वीडियो सम्मान , कला गौरव सम्मान , एनएसआई सम्मान समेत कई सम्मान से नवाजा गया रवीन्द्र कुमार का सपना बिहार में फिल्म इंडस्ट्री की स्थापना का भी है। उन्होंने बताया कि इसके लिये उन्हें सभी के अपेक्षित सहयोग की जरूरत होगी।
रवीन्द्र कुमार आज कामयाबी की बुलंदियों पर है। रवीन्द्र कुमार अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते है जिन्हें हर कदम उन्हें सपोर्ट किया है। रवीन्द्र कुमार अपनी सफलता का मूल मंत्र इन पंक्तियों में समेटे हुये हैं।रवीन्द्र कुमार मानना है कि
कामयाबी के सफ़र में मुश्किलें तो आएँगी ही
परेशानियाँ दिखाकर तुमको तो डराएंगी ही,
चलते रहना कि कदम रुकने ना पायें
अरे मंजिल तो मंजिल ही है एक दिन तो आएगी ही।
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