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मज़दूरों ने देश सजाया :महेश ठाकुर चकोर

मज़दूरों ने देश सजाया उनकी करुण कहानी है पेट में दानें नहीं,टपकते-देख नयन से पानी हैं :महेश ठाकुर चकोर
मज़दूरों ने देश सजाया उनकी करुण कहानी है पेट में दानें नहीं,टपकते-देख नयन से पानी हैं :महेश ठाकुर चकोर

कवि संक्षिप्त परिचय :-

नाम :- जनकवि महेश ठाकुर चकोर
मुजफ्फरपुर (बिहार )
फेसबुक संपर्क सुत्र :-
 https://www.facebook.com/maheshthakur.chakor

मज़दूरों ने देश सजाया

मज़दूरों ने देश सजाया
उनकी करुण कहानी है
पेट में दानें नहीं,टपकते-
देख नयन से पानी हैं

अर्धनग्न हैं, धंसे गाल
बन गयी भी कमर कमानी है
रामभक्त ना इनकी ख़ातिर
ना कोई रहमानी है

फुटपाथ पे सोते, सहते-
मौसम की मनमानी हैं
राजमहल के निर्माता
जिनकी ना कहीं पलानी है

रोगग्रस्त बुढ़ापा आया
आई नहीं जवानी है
बहन-बेटियां,सुंदर हो तो
हो जाती हैवानी है

कहीं टूट जाये गुमटी तो
इनको लाठी खानी है
गश्तीदल की सदा झेलनी
पड़ जाती शैतानी है

गाँव के हाक़िम नहीं सुनते
ना सुनती राजधनी है
आहो-ग़म के दरिया में
उबडुब करती ज़िंदगानी है

*महेश ठाकुर चकोर*