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हाजीपुर की सरिता राय की जीवंतता की गाथा

हाजीपुर की सरिता राय की जीवंतता की गाथा
हाजीपुर की सरिता राय की जीवंतता की गाथा

हाजीपुर की सरिता राय की जीवंतता की गाथा

जिसने अपना जीवन समर्पित कर दिया है असहाय लाचार बचपन को बचाने के लिए क्यों खास है सरिता राय आज की पड़ताल में।

अंग्रेजी में एमए की डिग्री और साथ में वकालत की पढ़ाई। फॉरेस्ट अॉफिसर की बेटी और एक वकील की पत्नी, जिसने कूड़े बीनने वाले बच्चों और अत्याचार सहने वाली छोटी-छोटी लड़कियों का भविष्य संवारने का बीड़ा उठाया। लेकिन यह इतना आसान नहीं था।

 

घरवालों का विरोध और समाज की तीखी नजर, इन सबका सामना करते हुए आखिरकार सरिता ने अपनी जिद पूरी कर ही ली।हाजीपुर के एक छोटे मोहल्ले बड़े युसूफपुर की रहने वाली सरिता राय, जिनके पिता फॉरेस्ट अफसर थे। सरिता ने अंग्रेजी से एमए किया और वकालत भी पढ़ी। सरिता की शादी अधिवक्ता रंजीत राय से हुई। शादी के बाद ही सरिता ने वैसे बच्चों के लिए काम करना शुरू किया जो तमाम सरकारी प्रयास के बावजूद स्कूल का मुंह नहीं देख पाते थे। सरिता को दोतरफा विरोध झेलना पड़ा।

 

अधिवक्ता पति को पसंद नहीं था कि पढ़ी-लिखी पत्नी वैसे इलाकों में जाए, जो गंदगी से अटे रहते हैं। घरवाले कहते थे कि फलां की बहू को देखो, वह कैसी है..। वहीं जिन बच्चों के लिए वह कुछ करना चाहती थी उन बच्चों के मां-बाप को भी यह अच्छा नहीं लग रहा था, क्योंकि बच्चे मजदूरी कर कुछ पैसे लाते थे। उनका कहना था कि कौन नुकसान सहेगा?

सरिता ने पहले अपने पति और घरवालों को समझाया। वह बच्चों के घरवालों के बीच भी लगातार जाती रहीं, उन्हें बच्चों के भविष्य का हवाला दिया। उन्हें समझाया कि वो सप्ताह में सिर्फ दो दिन ही बच्चों का समय लेंगी और उन्हें पढाएंगी। एेसा सुनकर बच्चों के माता-पिता मान गए और बच्चे आने लगे।

दो दिन पांच घंटे होती है पढ़ाई

करीना, लक्ष्मी, स्नेहा, करण, सनी, अजरुन, मौसम, चंदा, रवि, रानी और रजनी। अच्छे और सुंदर नाम वाले इन बच्चों की जिंदगी अच्छी और सुंदर कभी नहीं रही। सात से 12 साल तक के इन बच्चों ने कभी असली स्कूल में पढ़ाई नहीं की। कुछ ऐसी बच्चियां भी थीं, जो घरों में काम करते हुए गंदी हरकतों की शिकार होने से बचीं।

सरिता इन्हें ही पढ़ाती हैं। इसी वर्ष जनवरी में औपचारिक तौर पर अपनी संस्था को स्कूल का रूप दिया है। शनिवार और रविवार को सुबह सात बजे से दोपहर 12 बजे तक यह स्कूल चलता है। अक्षर ज्ञान कराया जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, मैनर्स, स्वच्छता की बात सिखाई जाती। बच्चे अंग्रेजी वाक्य बोलते हैं।

यहां आकर समझ में आते हैं साक्षरता वाले नारे

सरिता का काम देखकर विरोध करने वाले हार गए। गौरी, रूबी देवी, प्रियंका, जूली और रूबी कुमारी जैसी सहयोगी मिल गईं। खुद सरिता बताती हैं कि सबसे अधिक समझाना पड़ा बच्चों के मां-बाप को। आज स्थिति जुदा है। बच्चों को पढ़ता देख, माता-पिता ने चार पैसे और कमाने का जिम्मा खुद ओढ़ लिया है। पढ़ना है और आगे बढ़ना है, जैसे साक्षरता मिशन के नारे यहीं आकर समझ में आते हैं।

 

उनके शनिवारी-इतवारी स्कूल में कूड़ा बीनने वाले, लीची का छिलका उतारने वाले, बकरी चराने वाले, बाप के साथ पुश्तैनी पेशे में उतरकर बचपन गंवाने वाले बच्चे आते हैं। वह उन्हें मैनर्स सिखाती हैं। बताती हैं कि पढ़ाई जरूरी है। साफ रहना तो और जरूरी है। फिर बाल मजदूरी के नुकसान गिनाती हैं। 70 बच्चों को पढ़ाती हैं-बिना पैसे के, बिना किसी सरकार या संस्था की मदद के।

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Ankit Piyush

Ankit Piyush is the Editor in Chief at BhojpuriMedia. Ankit Piyush loves to Read Book and He also loves to do Social Works. You can Follow him on facebook @ankit.piyush18 or follow him on instagram @ankitpiyush.

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