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#उच्चैठ_सिद्धपीठ : जहा कालिदास ने मां भगवती के मुख पर पोत दी थी कालिख

#उच्चैठ_सिद्धपीठ : जहा कालिदास ने मां भगवती के मुख पर पोत दी थी कालिख
#उच्चैठ_सिद्धपीठ : जहा कालिदास ने मां भगवती के मुख पर पोत दी थी कालिख

#उच्चैठ_सिद्धपीठ : जहा कालिदास ने मां भगवती के मुख पर पोत दी थी कालिख

बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी गांव में मां काली का सिद्घपीठ, उच्चैठ भगवती का मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर का एेतिहासिक महत्व है, यहीं महान कवि कालिदास को माता काली ने वरदान दिया था और मूर्ख कालिदास मां का आशीर्वाद पाकर ही महान कवि के रूप में विख्यात हुए।

इस सिद्घपीठ पर काले शिलाखंड पर देवी की मूर्ति बनी हुई है। यहां मां सिंह पर कमल के आसन पर विराजमान हैं। माता का सिर्फ कंधे तक का हिस्सा ही नज़र आता है। सिर नहीं होने के कारण इन्हें छिन्नमस्तिका दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। माता के मंदिर के पास ही एक श्मशान है जहां आज भी तंत्र साधना की जाती है।

माना जाता है की यहाँ छिन्न मस्तिका माँ दुर्गा स्वयं प्रदुर्भावित हैं और यहाँ जो भी आता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। लोक मान्यता है कि उच्चैठ भगवती से जो भी भक्त श्रद्घा पूर्वक मांगा जाता है मां उसे अवश्य पूरा करती हैं। इसलिए इन्हें दुर्गा के नवम रूप सिद्घिदात्री और कामना पूर्ति दुर्गा के रूप में भी लोग पूजते हैं। भगवान श्री राम भी जनकपुर की यात्रा के समय उच्चैठ पहुंचे थे।

कैसे मूर्ख कालिदास बने विद्वान कालिदास

प्राचीन मान्यता है कि इसके पूर्व दिशा में एक संस्कृत पाठशाला थी और मंदिर तथा पाठशाला के बीच एक विशाल नदी थी। महामूर्ख कालिदास अपनी विदुषी पत्नी विद्दोतमा से तिरस्कृत होकर माँ भगवती के शरण में उच्चैठ आ गए थे और उस विद्यालय के आवासीय छात्रों के लिए खाना बनाने का कार्य करने लगे।

एक बार भयंकर बाढ़ आई और नदी का बहाव इतना ज्यादा था की मंदिर में संध्या दीप जलाने का कार्य जो कि छात्र किया करते थे , वो सब जाने में असमर्थ हो गए , कालिदास को महामूर्ख जान उसे आदेश दिया गया कि आज शाम वो दीप जला कर आये और साथ ही मंदिर की कोई निशानी लगा कर आये ताकि ये तथ्य हो सके कि वो मंदिर में पंहुचा था।

इतना सुनना था कि कालिदास झट से नदी में कूद पड़े और किसी तरह तैरते-डूबते मंदिर पहुंच कर दीपक जलाया और पूजा अर्चना की। अब मंदिर का कुछ निशान लगाने की बारी थी ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि उन्होंने दीप जलाया। कालिदास को कुछ नहीं दिखा तो उन्होंने जले दीप के कालिख को ही हाथ पर लगा लिया।

अब निशान बनाने के लिए उन्हें कुछ दिखा नहीं तो मूर्ख कालिदास ने माँ भगवती के साफ मुखमंडल पर ही कालिख लगा दिया, तभी माता प्रकट हुई और बोली रे मूर्ख कालिदास तुम्हे इतने बड़े मंदिर में कोई और जगह नहीं मिली और इस बाढ़ और घनघोर बारिश में जीवन जोखिम में डाल कर तुम दीप जलाने आ गए हो।

ये मूर्खता हो या भक्ति लेकिन मैं तुम्हे एक वरदान देना चाहती हूँ। कालिदास ने अपनी आपबीती सुनाई कि कैसे उनकी मूर्खता के कारण पत्नी ने तिरस्कृत कर भगा दिया। इतना सुनकर देवी ने वरदान किया कि आज सारी रात तुम जो भी पुस्तक स्पर्श करोगे तुम्हे कंठस्थ हो जाएगा।

कालिदास लौटे और सारे विद्यार्थियों के किताबों को स्पर्श कर डाला और आगे चलकर एक विद्वान कवि बने और अभिज्ञान शाकुंतलम , कुमार संभव , मेघदूत आदि की रचना की। आज भी वो नदी , उस पाठशाला के अवशेष मंदिर के निकट मौजूद है। मंदिर प्रांगण में कालिदास के जीवन सम्बंधित चित्र चित्रांकित हैं।

उच्चैठ देवी स्थान कैसे पहुचें

उच्चैठ देवी स्थान बेनीपट्टी से ४ किलोमीटर पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन है मधुबनी। सड़क द्वारा ये चारो दिशाओं से जुड़ा हुई है। अगर अपनी गाड़ी न हो तो बस के द्वारा भी यहां जाया जा सकता है। यह सिद्धपीठ सड़क मार्ग द्वारा दरभंगा, सीतामढ़ी और मधुबनी से जुड़ा हुआ है। इन स्थानों से बस और टैक्सी से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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Ankit Piyush

Ankit Piyush is the Editor in Chief at BhojpuriMedia. Ankit Piyush loves to Read Book and He also loves to do Social Works. You can Follow him on facebook @ankit.piyush18 or follow him on instagram @ankitpiyush.

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